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॥ निर्वाण षटकम्॥ मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥/आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से :| | गोंड महला पांच | | :

आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से :| | गोंड महला पांच | | :

अचरज कथा महा अनूप।  प्रातमा पारब्रह्म का रूपु | | रहाउ | | ना इहु बूढा ना इहु बाला।  ना इसु दूखु नही जम जाला।ना इहु बिनसै ना इहु जाइ। आदि जुगादि रहिआ समाइ। | | १ | | ना इसु उसनु नही इसु सीतु। ना इसु दुसमनु ना इसु मीतु। ना इसु हरखु नही इसु सोगु। सभु किछु इसका इहु करनै जोगु। | | २ | | ना इसु बापु नही इसु माइआ। इहु अपरंपरु होता आइआ। पाप पुंन का इसु लेपु न लागै। घट घट अंतरि सद ही जागै | | ३ | | तीनि गुणा इक सकति उपाइआ। महा माइआ ता की है छाइआ। अछल (मू ० ८६८ /६९ )अछेद अभेद दइआल। दीन दइआल सदा किरपाल। ता की गति मिति कछू न पाइ। नानक ता कै बलि बलि जाइ | | ४ | | १९ | | २१ | |

भाव -बोध :आध्यात्मिकता की यह कथा अनुपम है ;जीवात्मा स्वयं परब्रह्म का ही रूप है ,अद्वैत है | | रहाउ | | यह जीवात्मा न कभी बूढ़ा होता है , न कभी बालक कहलाता है। इसे कोई दुःख या यमदूतों का भय कभी नहीं हुआ। इसका नाश भी कभी नहीं होता , न यह कभी जन्मता ;आदि और अंत अर्थात सब समय यह विद्यमान रहता है ,शाश्वत है। | | १ | | इसे गर्मी या सर्दी की अनुभूति नहीं होती , इसका कोई शत्रु  और मित्र भी नहीं है। जीवात्मा हर्ष -शोक से परे रहता है ; सब कुछ इसी का है , यह सब कुछ करने में समर्थ है।  | | २ | | इसको जन्म  देनेवाले कोई माँ या बाप  नहीं ; यह परे से परे शारीरिक सीमाओं से परे है। इस पर पाप -पुण्य का कोई प्रभाव नहीं , क्योंकि यह घर -घर में जागृत तत्व  है। | | ३ | | जीवात्मा ने ही अविद्या की शक्ति से ,अधूरे ज्ञान से ,त्रिगुणात्मा माया को पैदा किया है ,अज्ञान के कारण महामाया इसी की छाया है। (यही माया परमात्मा की दासी है ,नौकरानी है ) 
स्वयं परब्रह्म का अंश होने के कारण वह  अछल (छल कपट  रहित ),अभेद(अभेद्य ) और अकाट्य है.
(अग्नि इसे जला नहीं सकती ,जल  इसे गीला नहीं कर सकता भिगो नहीं सकता है ,वायु सुखा नहीं सकती।अस्त्र आत्मा को काट नहीं सकते। न यह कहीं जाता है न कहीं से आता है ,माया ,जीव  (जीवात्मा या सिर्फ शुद्ध रूप आत्मा )और परमात्मा सदा से हैं इनका होना इज़नैस  शाश्वत है।न कोई कनिष्ठ  वरिष्ठ। माया परमात्मा की दासी है ,जीव को नांच नचांती है। -श्रीमद्भगवद गीता )

इसी भाव को  जो उल्लेखित पद में है यहां देखिये सुनिए गुनिये :

                        ॥ निर्वाण षटकम्॥


मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ 

https://templesinindiainfo.com/nirvana-shatakam-stotra-lyrics-in-hindi-english-and-meaning/

https://www.youtube.com/watch?v=PeKIzYPDlYs  

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