चर्चा में क्यों?धन्य श्री गुरुनानक देव
8 नवंबर, 2022 को गुरु नानक देव की 553वीं जयंती मनाई गई।
गुरु नानक देव
- जन्म:- उनका जन्म वर्ष 1469 में लाहौर के पास तलवंडी राय भोई (Talwandi Rai Bhoe) गाँव में हुआ था जिसे बाद में ननकाना साहिब नाम दिया गया।
- वह सिख धर्म के 10 गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक थे।
 
- योगदान:- उन्होंने 16वीं शताब्दी में अंतर-धार्मिक संवाद शुरू किया और अपने समय के अधिकांश धार्मिक संप्रदायों के साथ बातचीत की।
- सिखों के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन (वर्ष 1563-1606) द्वारा संकलित आदि ग्रंथ में शामिल रचनाएँ लिखीं गईं।- 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह (वर्ष 1666-1708) द्वारा किये गए परिवर्द्धन के बाद इसे गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में जाना जाने लगा।
 
- उन्होंने भक्ति के 'निर्गुण' (निराकार परमात्मा की भक्ति और पूजा) की वकालत की।
- त्याग, अनुष्ठान स्नान, छवि पूजा, तपस्या को अस्वीकार कर दिया।
- सामूहिक जप से जुड़े सामूहिक पूजा (संगत) के लिये नियम निर्धारित किये।
- अपने अनुयायियों को 'एक ओंकार' का मूल मंत्र दिया और जाति, पंथ एवं लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करने पर ज़ोर दिया।
 
- मृत्यु:- उनकी मृत्यु वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में हुई।
 
आधुनिक भारत में गुरु नानक देव की प्रासंगिकता:
- एक समतावादी समाज का निर्माण: समानता का उनका विचार निम्नलिखित नवीन सामाजिक संस्थानों के रूप में देखा जा सकता है, जो कि उनके द्वारा शुरू किये गए थे।- लंगर: सामूहिक खाना बनाना और भोजन को वितरित करना।
- पंगत: उच्च एवं निम्न जाति के भेद के बिना भोजन करना।
- संगत: सामूहिक निर्णय लेना।
 
- सामाजिक सद्भाव:- उनके अनुसार, पूरी दुनिया ईश्वर की रचना है और सभी एक समान हैं, केवल एक सार्वभौमिक रचनाकार है अर्थात् "एक ओंकार सतनाम" (Ek Onkar Satnam)।
- इसके अलावा क्षमा, धैर्य, संयम और दया उनके उपदेशों के मूल केंद्र में हैं।
 
- न्यायपूर्ण समाज का निर्माण:- उन्होंने अपने शिष्यों के सम्मुख ‘कीरत करो, नाम जपो और वंड छको’ (काम, पूजा और दान) का आदर्श रखा।
- उनके धर्म का आधार कर्म के सिद्धांत पर आधारित था और उन्होंने अध्यात्मवाद के विचार को सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं सामाजिक परिवर्तन की विचारधारा में परिणत कर दिया।
- उन्होंने ‘दशवंध’ (Dasvandh) की अवधारणा या अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा ज़रूरतमंद व्यक्तियों को दान करने की वकालत की।
 
- लैंगिक समानता:- उनके अनुसार, ‘महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी ईश्वर की कृपा को साझा करते हैं और अपने कार्यों के लिये समान रूप से ज़िम्मेदार होते हैं।
- महिलाओं के लिये सम्मान और लैंगिक समानता शायद उनके जीवन से सीखने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सबक है।
 
- शांति स्थापना:- भारतीय दर्शन के अनुसार, गुरु वह है जो रोशनी (अर्थात् ज्ञान) प्रदान करता है, संदेह को दूर करता है और सही रास्ता दिखाता है।
- इस संदर्भ में गुरु नानक देव के विचार दुनिया भर में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
 
स्रोत: पी.आई.बी.चर्चा में क्यों?
8 नवंबर, 2022 को गुरु नानक देव की 553वीं जयंती मनाई गई।
गुरु नानक देव
- जन्म:- उनका जन्म वर्ष 1469 में लाहौर के पास तलवंडी राय भोई (Talwandi Rai Bhoe) गाँव में हुआ था जिसे बाद में ननकाना साहिब नाम दिया गया।
- वह सिख धर्म के 10 गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक थे।
 
- योगदान:- उन्होंने 16वीं शताब्दी में अंतर-धार्मिक संवाद शुरू किया और अपने समय के अधिकांश धार्मिक संप्रदायों के साथ बातचीत की।
- सिखों के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन (वर्ष 1563-1606) द्वारा संकलित आदि ग्रंथ में शामिल रचनाएँ लिखीं गईं।- 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह (वर्ष 1666-1708) द्वारा किये गए परिवर्द्धन के बाद इसे गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में जाना जाने लगा।
 
- उन्होंने भक्ति के 'निर्गुण' (निराकार परमात्मा की भक्ति और पूजा) की वकालत की।
- त्याग, अनुष्ठान स्नान, छवि पूजा, तपस्या को अस्वीकार कर दिया।
- सामूहिक जप से जुड़े सामूहिक पूजा (संगत) के लिये नियम निर्धारित किये।
- अपने अनुयायियों को 'एक ओंकार' का मूल मंत्र दिया और जाति, पंथ एवं लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करने पर ज़ोर दिया।
 
- मृत्यु:- उनकी मृत्यु वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में हुई।
 
आधुनिक भारत में गुरु नानक देव की प्रासंगिकता:
- एक समतावादी समाज का निर्माण: समानता का उनका विचार निम्नलिखित नवीन सामाजिक संस्थानों के रूप में देखा जा सकता है, जो कि उनके द्वारा शुरू किये गए थे।- लंगर: सामूहिक खाना बनाना और भोजन को वितरित करना।
- पंगत: उच्च एवं निम्न जाति के भेद के बिना भोजन करना।
- संगत: सामूहिक निर्णय लेना।
 
- सामाजिक सद्भाव:- उनके अनुसार, पूरी दुनिया ईश्वर की रचना है और सभी एक समान हैं, केवल एक सार्वभौमिक रचनाकार है अर्थात् "एक ओंकार सतनाम" (Ek Onkar Satnam)।
- इसके अलावा क्षमा, धैर्य, संयम और दया उनके उपदेशों के मूल केंद्र में हैं।
 
- न्यायपूर्ण समाज का निर्माण:- उन्होंने अपने शिष्यों के सम्मुख ‘कीरत करो, नाम जपो और वंड छको’ (काम, पूजा और दान) का आदर्श रखा।
- उनके धर्म का आधार कर्म के सिद्धांत पर आधारित था और उन्होंने अध्यात्मवाद के विचार को सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं सामाजिक परिवर्तन की विचारधारा में परिणत कर दिया।
- उन्होंने ‘दशवंध’ (Dasvandh) की अवधारणा या अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा ज़रूरतमंद व्यक्तियों को दान करने की वकालत की।
 
- लैंगिक समानता:- उनके अनुसार, ‘महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी ईश्वर की कृपा को साझा करते हैं और अपने कार्यों के लिये समान रूप से ज़िम्मेदार होते हैं।
- महिलाओं के लिये सम्मान और लैंगिक समानता शायद उनके जीवन से सीखने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सबक है।
 
- शांति स्थापना:- भारतीय दर्शन के अनुसार, गुरु वह है जो रोशनी (अर्थात् ज्ञान) प्रदान करता है, संदेह को दूर करता है और सही रास्ता दिखाता है।
- इस संदर्भ में गुरु नानक देव के विचार दुनिया भर में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
 
स्रोत: पी.आई.बी.
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