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Showing posts from August, 2020

कहतें हैं कि हज़रत आदम से मुहम्मद साहब तक सवा लाख पैगम्बर हो चुके थे , अठासी करोड़ शेख़ हैं और जिसके छप्पन करोड़ ख़ास मुसाहिब हैं। | | १ | |

आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब से :बाणी भगता की कबीर जिउ घरु १ जिसके साथ सात हज़ार सेनापति हैं (ख़ुदा ने जिब्रील के साथ  सात हज़ार फ़रिश्ते भेजे थे ताकि बड़ी आयत मुहम्मद साहब तक सुरक्षित पहुंच सके।) ,उसके सवा लाख पैगम्बर हैं (कहतें हैं कि हज़रत आदम से मुहम्मद साहब तक सवा लाख पैगम्बर हो चुके थे ), अठासी करोड़ शेख़ हैं और जिसके छप्पन करोड़ ख़ास मुसाहिब हैं। | | १ | | उस तक मुझ गरीब की पुकार कौन पहुंचाए ?उसका सिक्का दूर -दूर तक चलता है ,उसके महलों तक कौन पहुंचे ?| | १ | | रहाउ | | तैतीस कोटि देवता उसके घर के सेवक  हैं। चौरासी लाख यौनियों के  जीव उसी के  कारण भटके फिरते हैं। बाबा आदम (आदिपुरुष )ने भी जब अवज्ञा की और खुदा ने उसे आँखें दिखाई , तो उसने भी खूब स्वर्ग  पाया (अर्थात स्वर्ग बहिश्त )से निकाल दिया गया ) | | २ | | जिसके मन में द्वैत की खलबली रहती है ,उसका मुख पीला (विवर्ण )पड़ा रहता है। वह कुरआन आदि ग्रंथों को छोड़कर स्वेच्छाचारी व्यवहार करता है , वह दुनिया को दोष देता है और लोगों पर रोष करता है ,अत : सदा अपना किया पाता है | | ३ | | हे प्रभु तुम दाता हो ,हम तुम्हारे द्वार के भिखारी  हैं। यदि मैं तुम्ह

॥ निर्वाण षटकम्॥ मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥/आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से :| | गोंड महला पांच | | :

आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से :| | गोंड महला पांच | | : अचरज कथा महा अनूप।  प्रातमा पारब्रह्म का रूपु | | रहाउ | | ना इहु बूढा ना इहु बाला।  ना इसु दूखु नही जम जाला।ना इहु बिनसै ना इहु जाइ। आदि जुगादि रहिआ समाइ। | | १ | | ना इसु उसनु नही इसु सीतु। ना इसु दुसमनु ना इसु मीतु। ना इसु हरखु नही इसु सोगु। सभु किछु इसका इहु करनै जोगु। | | २ | | ना इसु बापु नही इसु माइआ। इहु अपरंपरु होता आइआ। पाप पुंन का इसु लेपु न लागै। घट घट अंतरि सद ही जागै | | ३ | | तीनि गुणा इक सकति उपाइआ। महा माइआ ता की है छाइआ। अछल (मू ० ८६८ /६९ )अछेद अभेद दइआल। दीन दइआल सदा किरपाल। ता की गति मिति कछू न पाइ। नानक ता कै बलि बलि जाइ | | ४ | | १९ | | २१ | | भाव -बोध :आध्यात्मिकता की यह कथा अनुपम है ;जीवात्मा स्वयं परब्रह्म का ही रूप है ,अद्वैत है | | रहाउ | | यह जीवात्मा न कभी बूढ़ा होता है , न कभी बालक कहलाता है। इसे कोई दुःख या यमदूतों का भय कभी नहीं हुआ। इसका नाश भी कभी नहीं होता , न यह कभी जन्मता ;आदि और अंत अर्थात सब समय यह विद्यमान रहता है ,शाश्वत है। | | १ | | इसे गर्मी या सर्दी की अनुभूति नहीं होती , इसका कोई शत्र

जिस कउ राखै सिरजनहारू। झख मारउ सगल संसारु।। (आदि श्री गुरु ग्रंथ साहब ,गोंड महला पांच )

जिस कउ राखै सिरजनहारू। झख मारउ सगल संसारु।। (आदि श्री गुरुग्रंथ साहब ,गोंड महला पांच ) संत का लीआ धरति  बिदारउ। संत का निंदकु  अकास ते टारउ। संत कउ राखउ अपने जीअ नालि। संत उधारउ तत खिण  तालि | | १ | |  सोई संतु जि भावै राम। संत गोबिंद कै एकै काम। || १ | | रहाउ | | संत कै ऊपरि देई प्रभु हाथ। संत कै  संगि  बसै दिनु राति। सासि सासि संतह प्रतिपालि। संत का दोखी राज ते टालि | | २ | | संत की निंदा करहु न कोइ। जो निंदै तिस का पतनु  होइ। जिस कउ राखै सिरजन हारु। झख मारउ सगल संसारु | | ३ | | प्रभ अपने का भइआ बिसासु। जीउ पिंडु सभु (मू ० ८६७ /६८ )तिसकी रासि। नानक कउ उपजी परतीति। मनमुख हार गुरमुख सद जीति | | ४ | | १६ | | १८ | |    संतों द्वारा तिरस्कृत जीव धरती पर रहने के योग्य नहीं है। संतों की निंदा करने वाले को आकाश से गिरा दिया जाना चाहिए। संतों का नाम अपने प्राणों के साथ रखा जाना चाहिए ,क्योंकि संतों की कृपा हो जाए तो क्षण भर में ही जीव का उद्धार हो सकता है।१। संत वही है जो प्रभु को प्रिय हो ,जो प्रभु का प्रिय हो; वास्तव में संत और परमात्मा का एक ही काम है अर्थात  हरि और संत में अभेद होत