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Showing posts from August, 2018

तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि जी ,हरि एको पुरखु समाणा। इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा। |

तू घट घट अंतरि सरब निरन्तरि  जी ,हरि एको पुरखु समाणा।  इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज़ विडाणा।  |  ये जो हर जीव के सांस की धौंकनी को चला रहा है यह वही है सदा वही है वही सबमें सारी  कायनात में समाया हुआ है सृष्टि के हर अंग की सांस को वही चला रहा है। ये जो दिख रहा है, के एक दान करने वाला अमीर है एक दान लेने वाला गरीब है ये सब उसका खेल है। अमीर अपने अज्ञान में अहंकारी बना हुआ है खुद को देनहार समझ रहा है और गरीब उसकी अमीरी को देख अपने अंदर हीन  भाव से ग्रस्त हो रहा है। जबकि : देनहार कोई और है देत  रहत दिन रैन , लोग भरम मोपे  करत ताते नीचे नैन ।     ....... ......किंग एन्ड संत  अब्दुर रहीम खाने खाना  उद्धरण :तुलसी दास जी ने यह सवाल कविवर रहीम साहब से पूछा था-राजन  ये देने की रीत आपने कहाँ से सीखी जितनी ज्यादा दान की रकम बढ़ती जाती है उतने ही ज्यादा आपके नैन झुकते जाते हैं तब रहीम जी ने उक्त पंक्तिया कही थीं।  आदमी बस इतना समझ ले ये सब उसका खेल है इस खेल में सबकी अलग अलग पोज़िशन है सबको अपनी पोज़िशन को सही तरीके से संभाले रहना है खेल खेलते रहना है। जैसे फ़ुटबाल के खेल में कोई

Surrender to God !Resist the devil ,and he will run from you (JAMES 4.7 ;HINDI ALSO )

So ,then submit yourself to God .Resist the devil ,and he will run away from you  "God opposes the proud ,but gives grace to the humble."Submit yourself ,then to God.Resist the devil and he will flee from you.Draw near to God ,and He will draw near to you. Cleanse your hands ,your sinners , and purify your hearts ,you double minded ...  and do not give devil a foothold . Put on the full armor of God ,so that you can make your stand against the devil's schemes. Humble yourself ,therefore ,under God's mighty hand ,so that in due time He may exalt you . Be sober -minded and alert. Your adversary the devil prowls around like roaring lion ,seeking someone to devour.  Resist him, standing firm in your faith and in the knowledge that your brothers throughout the world are undergoing the same kinds of suffering. घमंडी का सर हमेशा नीचा होता है। अहंकार का मूर्त रूप रावण मारा गया। गीता मैं कृष्ण अर्जुन से कहते हैं तू मेरी शरण आ जा मैं तेरी हिफाज़त करूंगा।  गुरुग

राम नामु उरि मै गहियो जाकै सम नही कोइ , जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारो होइ।

राम नामु उरि मै गहियो जाकै सम नही कोइ , जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारो होइ।  हृदय में वही चीज़ उतरती है जिससे प्रेम हो। मस्तिष्क तक तो बहुत सी चीज़ आ जाती हैं। राम नाम से प्रीती ऐसी हो जो हृदय में जगह बना ले बस जाए। जब तक मैं उसे याद रखूँ सांस की धौंकनी चलती रहे उसे भूलूँ ,  मर जाऊँ।  शीशा ए दिल में बसी तस्वीरें यार जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली।  सिमरन से मेरे सब दुखों  का नाश हो गया है। अब मुझे उस प्रभु दर्शन भी होवेंगे।

बिखिअन सिउ काहे रचियो निमख न होहि उदास , कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास।

बिखिअन सिउ काहे रचियो निमख न होहि  उदास , कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास।  गुरुग्रंथ साहब की भाषा (भाखा )हिंदी अपभृंश शब्दों से भरपूर होने के कारण हिंदी से इसकी निकटता का बोध साफ़ साफ़ देखा जा सकता है। मसलन इसी श्लोक साखी या दोहे को देखिये बिखियन विषय विकार का ही रूप है बिखिया यहां ष का ख हो गया है। निमिष का निमिख हो गया है।  भावार्थ :गुरु नानक कहते हैं रे मन  तू सर से पैर तक माया और उसके कुनबे में ही डूबा हुआ है विषय विकार ही रे प्राणि  तेरा मन रमण  करता है।यदि तू हरी को सिमरन करे तो मृत्यु का भय तेरा चला जाए तेरी आवाजाही का चक्र यम की फास भय से तू मुक्त हो जाए। इसीलिए  सिमरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना।  मनु माइआ मै रमि रहिओ निकसत नाहिन मीत , नानक मूरत चित्र जिउ  छाडित नाहनि भीत।   ये मन माया में उसके उपकरणों ,कुनबे मोह -माया, अहंकार, लोभ और काम,ईर्ष्या में रात दिन ऐसे रमा हुआ है जैसे दीवार में जड़ा चित्र दीवार को छोड़ के और कहीं जा ही नहीं सकता।  

गुन गोबिंद गाइयो नही जनमु अकारथ कीन , कहु नानक हरि भजु मना जिहि बिधि जल कौ मीन।

गुन गोबिंद गाइयो नही जनमु अकारथ कीन , कहु नानक हरि भजु मना जिहि बिधि जल कौ मीन।  हरी के नाम से प्रीती उसका गुणगायन व्यक्ति के रोम रोम से ऐसे हो जैसी प्रीती और नेहा मच्छी का जल से होता है। मच्छी जल के बिना नहीं रह सकती और इतना ही नहीं जब उसको सब्जी बनाके लोग खा लेते हैं वह उसके बाद भी पानी मांगती रहती है। अनुभव होगा उन लोगों को के मच्छी खाने के बाद प्यास ज्यादा लगती है ऐसा हो रामनाम का स्तुतिगायन। 

राम गयो रावनु गयो जाको बहुपरवार , इह मारग संसार को नानक थिरु नही कोइ।

राम गयो  रावनु गयो जाको बहुपरवार , इह मारग संसार को नानक थिरु नही कोइ।  नौवें गुरु नानक कहते हैं राम पुण्य के प्रतीक हैं और रावण पाप के। दोनों का कुनबा माया का ही कुनबा है ,इन इन्द्रियों को दोनों के ही पार जाना है। कुंजी है वाहगुरु /राम / के किसी भी नाम का का सिमरन। जो इन्द्रियों को माया  की पकड़ से मुक्त करवा सकता है।