बिखिअन सिउ काहे रचियो निमख न होहि उदास ,
कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास।
गुरुग्रंथ साहब की भाषा (भाखा )हिंदी अपभृंश शब्दों से भरपूर होने के कारण हिंदी से इसकी निकटता का बोध साफ़ साफ़ देखा जा सकता है। मसलन इसी श्लोक साखी या दोहे को देखिये बिखियन विषय विकार का ही रूप है बिखिया यहां ष का ख हो गया है। निमिष का निमिख हो गया है।
भावार्थ :गुरु नानक कहते हैं रे मन तू सर से पैर तक माया और उसके कुनबे में ही डूबा हुआ है विषय विकार ही रे प्राणि तेरा मन रमण करता है।यदि तू हरी को सिमरन करे तो मृत्यु का भय तेरा चला जाए तेरी आवाजाही का चक्र यम की फास भय से तू मुक्त हो जाए। इसीलिए
सिमरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना।
मनु माइआ मै रमि रहिओ निकसत नाहिन मीत ,
नानक मूरत चित्र जिउ छाडित नाहनि भीत।
ये मन माया में उसके उपकरणों ,कुनबे मोह -माया, अहंकार, लोभ और काम,ईर्ष्या में रात दिन ऐसे रमा हुआ है जैसे दीवार में जड़ा चित्र दीवार को छोड़ के और कहीं जा ही नहीं सकता।
कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास।
गुरुग्रंथ साहब की भाषा (भाखा )हिंदी अपभृंश शब्दों से भरपूर होने के कारण हिंदी से इसकी निकटता का बोध साफ़ साफ़ देखा जा सकता है। मसलन इसी श्लोक साखी या दोहे को देखिये बिखियन विषय विकार का ही रूप है बिखिया यहां ष का ख हो गया है। निमिष का निमिख हो गया है।
भावार्थ :गुरु नानक कहते हैं रे मन तू सर से पैर तक माया और उसके कुनबे में ही डूबा हुआ है विषय विकार ही रे प्राणि तेरा मन रमण करता है।यदि तू हरी को सिमरन करे तो मृत्यु का भय तेरा चला जाए तेरी आवाजाही का चक्र यम की फास भय से तू मुक्त हो जाए। इसीलिए
सिमरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना।
मनु माइआ मै रमि रहिओ निकसत नाहिन मीत ,
नानक मूरत चित्र जिउ छाडित नाहनि भीत।
ये मन माया में उसके उपकरणों ,कुनबे मोह -माया, अहंकार, लोभ और काम,ईर्ष्या में रात दिन ऐसे रमा हुआ है जैसे दीवार में जड़ा चित्र दीवार को छोड़ के और कहीं जा ही नहीं सकता।
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