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दस गुरुओं का ब्रह्म तेज गुरुग्रंथ साहब कहलाता है

दस गुरुओं का ब्रह्म तेज गुरुग्रंथ साहब कहलाता है ,

हर नर , नारी- हर, हर-जन के मन को भाता है। 

ओ 'मनमुख' सुन ,तू 'गुरुमुख 'बन यह ब्रह्म ज्ञान बन जाता है ,

'मैं' 'मैं' मेरा सब छोड़छाड़ बस तूं तू तूं हो जाता है। 

जो जान गया क्या ब्रह्म ज्ञान वह हरजन ही हो जाता है। 

यहां हरजन का ध्वनित अर्थ ब्रह्म ग्यानी है। 'मन मुख' वह है जो प्रेय का मार्ग अपनाता है वही  करता है जो मनभाता है। इसका फल ,रस  आरम्भ में मीठा मीठा अंत में कसैला कड़वा हो जाता है। 

गुरमुख गुरु की सुनता है मानता है। मुँहदेखी की बात नहीं करता अनुगामी बन जाता है गुरु के कृत्य का उपदेश का गुरु की सुनता ही नहीं मानता भी है उसे जीवन में धारण भी करता है।
श्रेयस (श्रेय ,लोक कल्याणकारी  )और प्रेयस (प्रिय ,स्व : हित पोषक ) दो ही मार्ग हैं जीवन के निर्णय आपका है। आप जिसका भी चयन करे स्वायत्ता है आपको छूट है गुरुसाहब की तरफ से। 

गुरुग्रंथ साहब सबसे बड़ा शिक्षक है ,बाइबिल ,गीता, कुरआन ,धम्मपद आदि सभी गुरु हैं इनकी सुनिए और मानिये। 

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वर  ,

गुरु :  साक्षात्  परब्रह्म  तस्मै श्रीगुरवे नम : . 

गुरु ही परमात्मस्वरूप है। गुरु ही सर्वस्व है। 

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