भिजउ सिजउ कंबली अलह वरसउ मेहु | जाइ मिला तिना सजणा तुटउ नाही नेहु || २५ ||
फरीदा मैं भोलावा पग दा मतु मैली होइ जाइ | गहिला रूहु न जाणई सिरु भी मिटी || २६ ||
फरीदा सकर खंडु निवात गुडु माखिओ मांझा दुधु | सभे वसतू मिठीआं रब न पूजनि तुधु || २७ ||
फ़रीदा रोटी मेरी काठ की लावणु मेरी भुख | जिना खाधी चोपड़ी घणे सहनिगे दुःख।
--------------------Aadi Shre Guru Granth Sahab
भाव सार : ओढ़नी भीगती है ,तो भीग जाय ,किन्तु प्रभु -प्रियतम की ओर से बरसाया मेंह बरसता रहे ,इसमें भी आनंद है | मैं तो निश्चित ही अपने प्रियतम को जा मिलूंगा ,ताकि मेरा प्रेम अमर बना रहे || २५ ||
फरीद कहते हैं (कि यह सच है )कि शक्कर ,चीनी ,मिश्री ,गुड़ ,शहद एवं भैंस का दूध ,सब वस्तुएं मीठी होती हैं ,किन्तु इनमें से कोई भी वस्तु जीव को परमात्मा की ओर प्रवृत्त नहीं करती (अर्थात बेकार है )|| २६ ||
फरीद जो कहते हैं कि मेरी रोटी लकड़ी की तरह कठोर है और मेरी भूख ही उसके साथ खाने वाली सब्ज़ी है | (अभिप्राय यह है कि भूख को मैंने संयत कर लिया है ,काठ की कठोर रोटी मुझे सांसारिक भोग -विलास से मुक्त रखती है ); जो लोग घी से चुपड़ी रोटी खाते हैं (अर्थात विषय -विकारों में पड़ते हैं )वे ही दुःख सहन करेंगे || २८ ||
भाव यहां यह है कि भूख भी एक प्रकार की नहीं है ,रोटी क्षुधा लगने पर ही खानी चाहिए ,जो कुछ है उसमें संतोष होना ज़रूरी है।
विशेष :सन्दर्भ है फरीद की आयु तब सात वर्ष थी एक दिन माँ ने जो स्वयं पांच वक्त की नमाज़ी थी फरीद से कहा-बेटा नमाज़ भी पढ़ा आकर कभी ,सारे दिन खेलता ही रहता है । अबोध बालक फरीद कहने लगे माँ नमाज़ पढ़ने से क्या मिलता है। माँ ने कहा बेटा खजूरें मिलती हैं गुड़ मिश्री मिलती है,मीठाई मिलती है । फरीद कहने लगे ठीक है माँ तो फिर मैं भी नमाज़ पढ़ा करूंगा। माँ ने फरीद को दो वक्त (सुबह ,शाम )की नमाज़ पढ़नी सिखला दी। अब माँ जब फरीद नमाज़ पढ़ते तो मुसल्ले के नीचे कुछ खजूरें रखना न भूलती। फरीद मुसल्ला समेटता तो खुश हो जाता। माँ कभी कोई मिठाई रख देती। वक्त बीतता गया फरीद तन्मय होकर नमाज़ पढ़ने लगे ,एक दिन माँ किसी काम से बाहर निकल गई उसे याद आया शाम की नमाज़ का तो वक्त गया। वह जल्दी जल्दी घर की ओर आई अंदर कोठे में गई और एक तश्तरी में मिठाई ले आई बोली आज खुदा जल्दी में था मुझे दे गया।
बोले फरीद माँ अब इसकी जरूरत नहीं आज तो खुदा सीधे मुझे ही दे गया। ऐसी लौ लगी फरीद की वह अपना आपा ही भूल गए।
फरीदा मैं भोलावा पग दा मतु मैली होइ जाइ | गहिला रूहु न जाणई सिरु भी मिटी || २६ ||
फरीदा सकर खंडु निवात गुडु माखिओ मांझा दुधु | सभे वसतू मिठीआं रब न पूजनि तुधु || २७ ||
फ़रीदा रोटी मेरी काठ की लावणु मेरी भुख | जिना खाधी चोपड़ी घणे सहनिगे दुःख।
--------------------Aadi Shre Guru Granth Sahab
भाव सार : ओढ़नी भीगती है ,तो भीग जाय ,किन्तु प्रभु -प्रियतम की ओर से बरसाया मेंह बरसता रहे ,इसमें भी आनंद है | मैं तो निश्चित ही अपने प्रियतम को जा मिलूंगा ,ताकि मेरा प्रेम अमर बना रहे || २५ ||
फरीद कहते हैं (कि यह सच है )कि शक्कर ,चीनी ,मिश्री ,गुड़ ,शहद एवं भैंस का दूध ,सब वस्तुएं मीठी होती हैं ,किन्तु इनमें से कोई भी वस्तु जीव को परमात्मा की ओर प्रवृत्त नहीं करती (अर्थात बेकार है )|| २६ ||
फरीद जो कहते हैं कि मेरी रोटी लकड़ी की तरह कठोर है और मेरी भूख ही उसके साथ खाने वाली सब्ज़ी है | (अभिप्राय यह है कि भूख को मैंने संयत कर लिया है ,काठ की कठोर रोटी मुझे सांसारिक भोग -विलास से मुक्त रखती है ); जो लोग घी से चुपड़ी रोटी खाते हैं (अर्थात विषय -विकारों में पड़ते हैं )वे ही दुःख सहन करेंगे || २८ ||
भाव यहां यह है कि भूख भी एक प्रकार की नहीं है ,रोटी क्षुधा लगने पर ही खानी चाहिए ,जो कुछ है उसमें संतोष होना ज़रूरी है।
विशेष :सन्दर्भ है फरीद की आयु तब सात वर्ष थी एक दिन माँ ने जो स्वयं पांच वक्त की नमाज़ी थी फरीद से कहा-बेटा नमाज़ भी पढ़ा आकर कभी ,सारे दिन खेलता ही रहता है । अबोध बालक फरीद कहने लगे माँ नमाज़ पढ़ने से क्या मिलता है। माँ ने कहा बेटा खजूरें मिलती हैं गुड़ मिश्री मिलती है,मीठाई मिलती है । फरीद कहने लगे ठीक है माँ तो फिर मैं भी नमाज़ पढ़ा करूंगा। माँ ने फरीद को दो वक्त (सुबह ,शाम )की नमाज़ पढ़नी सिखला दी। अब माँ जब फरीद नमाज़ पढ़ते तो मुसल्ले के नीचे कुछ खजूरें रखना न भूलती। फरीद मुसल्ला समेटता तो खुश हो जाता। माँ कभी कोई मिठाई रख देती। वक्त बीतता गया फरीद तन्मय होकर नमाज़ पढ़ने लगे ,एक दिन माँ किसी काम से बाहर निकल गई उसे याद आया शाम की नमाज़ का तो वक्त गया। वह जल्दी जल्दी घर की ओर आई अंदर कोठे में गई और एक तश्तरी में मिठाई ले आई बोली आज खुदा जल्दी में था मुझे दे गया।
बोले फरीद माँ अब इसकी जरूरत नहीं आज तो खुदा सीधे मुझे ही दे गया। ऐसी लौ लगी फरीद की वह अपना आपा ही भूल गए।
Comments
Post a Comment