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रुखी सुखी खाइ कै ठंढा पाणी पीउ | फ़रीदा देखि पराई चोपड़ी ना तरसाए जीउ || २९ ||

 रुखी सुखी खाइ कै ठंढा पाणी पीउ | फ़रीदा देखि पराई चोपड़ी ना तरसाए जीउ || २९ ||

अजु न सुति कंत सिउ अंगु मुड़े मुडि  जाइ | जाइ पुछहु डोहागणी तुम किउ   रेणि बिहाइ || ३० ||

साहुरै ढोई ना लहै पेईऐ नाही थाउ | पिरु वातड़ी न पुछई धन सोहागणि नाउ  || ३१  ||

साहुरै पेईऐ कंत की कंतु अगंमु अथाहु | नानक सो सोहागणी जु भावै बे परवाह || ३२ || 


                                                         ------------ Aadi Guru Shri Guru Granth Sahab Se

भाव सार :   ए फरीद  अपनी रुखी -सूखी रोटी खाकर अर्थात जो मिल जाए उसे प्रेम से ग्रहण करो ,दूसरे के पदार्थ को महल -मड़ियों ,कोठी -बंगलों संपत्ति और सौंदर्य को देख मन में हीन भाव न रखो उधर से विरक्त रहो।|| २९ || 

फरीद जी कहते हैं कि मैं तो केवल आज केवल एक दिन के लिए प्रियतम की सेज से अलग सोइ हूँ (सोये कहाँ फरीद रात भर करवट बदलते रहे ,एक दिन नमाज़ न पढ़ी बे -चैन रहे ,जीव आत्मा  रूपी  स्त्री और पति -परमेश्वर से उसका बिछोड़ा बड़ा ही दुखद है ),और मेरे शरीर का अंग-अंग पीड़ा कर रहा है -भला वे वियोगिनियाँ क्योंकर जीवित हैं ,जो सदैव प्रियतम से अलग हैं -चलकर विरहणी से पूछो कि वह रात्रि क्योंकर (कैसे )गुज़ारती है ! (अभिप्राय यह कि सच्चा प्यार एक दिन की विलगता नहीं सहन कर सकता ,बेचारी विरहणी जीवात्माएं कैसे जीवन गुज़ारती होंगी ?)||३० || 

जो जीव -स्त्री ससुराल (परलोक )में प्रतिष्ठित नहीं ,पीहर (इहलोक )में जिसकी कोई क़द्र नहीं और प्रियतम (प्रभु )उसकी बात नहीं पूछता ,भला उसे 'सुहागिन 'की संज्ञा देना कहाँ तक उचित है ?|| ३१ || 

(३२ वें श्लोक में बाबा फरीद की उपरोक्त धारणा पर गुरु नानक टिपण्णी करते हैं -)ऐ नानक ,जीव स्त्री ससुराल या पीहर (परलोक या इहलोक ),दोनों जगह अपने पति (परमेश्वर )की है और वह निपट बे -परवाह है | जो ऐसे बे -परवाह बादशाह पति को रुचती है ,वही स्त्री (जीव )वास्तव में सुहागिन होती है || ३२ ||
 

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