|| गोंड || आकासि गगनु पातालि गगनु है चहुदिसि गगनु रहाइले | आनद मूलु सदा पुरखोतमु घटु बिनसै गगनु न जाइले || १ ||
मोहि बैरागु भइओ | इहु जीउ आइ कहा गइओ || १ || रहाउ ||
पंच ततु मिलि काइआ कीन्हीं ततु कहा ते कीनु रे | करम बध तुम जीउ कहत हौ करमहि किनि जीउ दीनु रे || २ ||
हरि महि तनु है तन महि हरि है सरब निरंतरि सोइ रे | कहि कबीर रामु नामु न छोडउ सहजे होइ सु होइ रे || ३ || ३ ||
भाव -सार :आकाश ,पाताल तथा हमारे चतुर्दिक चेतन सत्ता विद्यमान है। ईश्वर की सर्व्यापकता का बखान है यहां। आनंद रूप में पुरुषोत्तम की सत्ता शरीर के नष्ट हो जाने पर भी शून्य में नहीं मिल जाती। || १ ||
मुझे इस बात का क्षोभ है कि संसार में जन्म लेने वाले मनुष्य भी आकर कहाँ लौट जाते हैं। || १ || रहाउ ||
परमात्मा ने पांच तत्वों को मिलाकर यह शरीर बनाया ,किन्तु कोई क्या जाने कि वे तत्व कहाँ से आते हैं ?आप जीव को कर्मों से बंधा हुआ कहते हो फिर चाहो तो पूछ सकते हो कि कर्मों को बनाने वाला कौन हैं ?|| २ ||
हमारे लिए वह परमात्मा ही सब कुछ है ,हमारे तन -मन में हमेशा से वही बसा हुआ है। कबीर जी कहते हैं कि जीव को राम -नाम का ध्यान नहीं छोड़ना चाहिए ,प्रभु -कृपा से जो कुछ सहज में होता है ,वही ग्राह्य है।
जेहि बिधि राखे राम तेहि बिध रहिये ,वाहगुरु वाहगुरु वाहगुरु कहिये।
मोहि बैरागु भइओ | इहु जीउ आइ कहा गइओ || १ || रहाउ ||
पंच ततु मिलि काइआ कीन्हीं ततु कहा ते कीनु रे | करम बध तुम जीउ कहत हौ करमहि किनि जीउ दीनु रे || २ ||
हरि महि तनु है तन महि हरि है सरब निरंतरि सोइ रे | कहि कबीर रामु नामु न छोडउ सहजे होइ सु होइ रे || ३ || ३ ||
भाव -सार :आकाश ,पाताल तथा हमारे चतुर्दिक चेतन सत्ता विद्यमान है। ईश्वर की सर्व्यापकता का बखान है यहां। आनंद रूप में पुरुषोत्तम की सत्ता शरीर के नष्ट हो जाने पर भी शून्य में नहीं मिल जाती। || १ ||
मुझे इस बात का क्षोभ है कि संसार में जन्म लेने वाले मनुष्य भी आकर कहाँ लौट जाते हैं। || १ || रहाउ ||
परमात्मा ने पांच तत्वों को मिलाकर यह शरीर बनाया ,किन्तु कोई क्या जाने कि वे तत्व कहाँ से आते हैं ?आप जीव को कर्मों से बंधा हुआ कहते हो फिर चाहो तो पूछ सकते हो कि कर्मों को बनाने वाला कौन हैं ?|| २ ||
हमारे लिए वह परमात्मा ही सब कुछ है ,हमारे तन -मन में हमेशा से वही बसा हुआ है। कबीर जी कहते हैं कि जीव को राम -नाम का ध्यान नहीं छोड़ना चाहिए ,प्रभु -कृपा से जो कुछ सहज में होता है ,वही ग्राह्य है।
जेहि बिधि राखे राम तेहि बिध रहिये ,वाहगुरु वाहगुरु वाहगुरु कहिये।
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