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अलाह पाकं पाक है सक करउ जे दूसर होइ | कबीर करमु करीम का उहु करै जानै सोइ || ४ || १ ||

तिलंग बाणी भगता की कबीर जी  (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से )

१ ओं...... सतिगुर प्रसादि || बेद कतेब इफ़तरा भाई दिल का फिकरु  न जाइ। टुकु दमु करारी जउ करहु हाजिर हजूरी खुदाइ || १ || 

बदे खोजु दिल हर रोज ना फिरु परेसानी माहि | इह जु दुनीआ सिहरु मेला दसतगीरी नाहि || १ || रहाउ || 

दरोगु  पड़ि पड़ि खुसी होइ बेखबर बादु बकाहि | हकु सचु खालकु खलक मिआने सिआम मूरति नाहि || २ || 

असमान म्याने लहंग दरीआ गुसल करदन बूद | करि फकरु दाइम लाइ चसमे जह तहा मउजूदु || ३ || 

अलाह पाकं पाक है सक करउ जे दूसर होइ | कबीर करमु करीम का उहु करै जानै सोइ || ४ || १ ||  

भाव -सार : हे भाई ! वेदों -उपनिषदों और कुरआन के उदाहरण देकर और बढ़ चढ़ कर बातें करने से मन का भय दूर नहीं होता। यदि तुम अपने मन को पल मात्र भी नियंत्रित कर लो ,तो तुम्हें सबमें परमात्मा व्याप्त दीख पड़ेगा। || १ || 

हे भाई ! अपने मन को प्रतिपल खोजो | घबराहट में न भटको | यह जगत एक जादू तुल्य है ,एक तमाशा- सा है (इस संबंध में वाद विवाद से )कुछ भी मिलने वाली चीज़ नहीं है। || १ || 

अज्ञानी लोगों ने पढ़ -पढ़कर (जो लिखा है ,वह )झूठ है ; वे प्रसन्न हो -होकर वाद -विवाद करते हैं | सत्यस्वरूप परमात्मा जन -मानस में ही अवस्थित है ,(न वह कहीं सातवें आसमान पर बैठा है और )न वह परमात्मा कृष्ण की मूर्ती में है। || २ || 

वह प्रभु रूपी नदी तुम्हारे अंत :करण में लहरें मार रही है ,तुम्हें उसमें स्नान करना था | अब तू हमेशा उससे प्रार्थना कर ,अनासक्ति की ऐनक लगाकर देख ,कि वह प्रभु सर्वत्र अवस्थित है || ३ || 

परमात्मा सबसे पवित्र हस्ती है। इस बात में मैं तब संदेह करूँ ,यदि कोई उस प्रभु के तुल्य हो (वह प्रभु अप्रतिम है )| हे कबीर ! इस रहस्य को वही मनुष्य समझ सकता है ,जिसे वह समझने योग्य बनाए | यह कृपा उस कृपालु प्रभु की स्वेच्छा पर निर्भर है || ४ || १ || 

विशेष : कबीर ब्रह्म ग्यानी थे। सतो -रजो -तमो गुणों का अतिक्रमण करने वाले निर्गुनिया ब्रह्म के उपासक थे। आदि श्री गुरुग्रंथ साहब में ब्रह्म ज्ञान सम्बंधित पद ही रखे गए हैं सगुण -साकार -सविशेष ब्रह्म को शामिल नहीं किया गया है। 

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