|| गोंड || नरू मरे नरू कामि न आवै | पसू मरै दस काज सवारै || १ || आदि श्री गुरु ग्रंथ साहब से
अपने करम की गति मै किआ जानउ | मै किआ जानउ बाबा रे || १ || रहाउ ||
हाड जले जैसे लकरी का तूला | केस जले जैसे घास का पूला || २ ||
कहु कबीर तब ही नरू जागै | जम का डंडु मूंड महि लागै || ३ || २ ||
भाव सार :मनुष्य की मृत देह किसी काम नहीं आती ,जबकि मरा हुआ पशु दस काम संवारता है। हाथी के बारे में तो कहा जाता है ज़िंदा हाथी लाख का मरा सवा लाख का। हाथी दांत से तरह तरह की कलात्मक साज सज्जा की चीज़ें मृग छाला और बाघ की खाल तो योगियों तपस्वियों का आसन बनती है। गैंडे की खाल राजा रानियों के काम आई है। || १ ||
अपने कर्मों की गति मैं नहीं जानता ,मुझे क्या पता है कि मेरा क्या हाल होगा। || १ || रहाउ ||
अंत में हड्डियां इस प्रकार जल जायेंगी ,जैसे लकड़ी का गठ्ठा हो ,और बाल ऐसे जलेंगे जैसे घास की गठरी हो। || २ ||
कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य तभी जागता है ,जब यमदूत का डंडा सिर में लगता है।उससे पहले प्रभु सिमरन नहीं करता। कपाल क्रिया करते हैं तब आत्मा नंद बाहर निकलता है ऐसी मान्यता है सनातन परम्परा में।
अपने करम की गति मै किआ जानउ | मै किआ जानउ बाबा रे || १ || रहाउ ||
हाड जले जैसे लकरी का तूला | केस जले जैसे घास का पूला || २ ||
कहु कबीर तब ही नरू जागै | जम का डंडु मूंड महि लागै || ३ || २ ||
भाव सार :मनुष्य की मृत देह किसी काम नहीं आती ,जबकि मरा हुआ पशु दस काम संवारता है। हाथी के बारे में तो कहा जाता है ज़िंदा हाथी लाख का मरा सवा लाख का। हाथी दांत से तरह तरह की कलात्मक साज सज्जा की चीज़ें मृग छाला और बाघ की खाल तो योगियों तपस्वियों का आसन बनती है। गैंडे की खाल राजा रानियों के काम आई है। || १ ||
अपने कर्मों की गति मैं नहीं जानता ,मुझे क्या पता है कि मेरा क्या हाल होगा। || १ || रहाउ ||
अंत में हड्डियां इस प्रकार जल जायेंगी ,जैसे लकड़ी का गठ्ठा हो ,और बाल ऐसे जलेंगे जैसे घास की गठरी हो। || २ ||
कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य तभी जागता है ,जब यमदूत का डंडा सिर में लगता है।उससे पहले प्रभु सिमरन नहीं करता। कपाल क्रिया करते हैं तब आत्मा नंद बाहर निकलता है ऐसी मान्यता है सनातन परम्परा में।
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