तिलंग बाणी || नामदेव जी ||
मै अंधुले की टेक तेरा नाम खुंदकारा | मै ग़रीब मैं मसकीन तेरा नामु है अधारा || १ || रहाउ ||
करीमाँ रहिमां अलाह तू गनीं | हाजरा हजूरि दरि पेसि तू मनीं || १ ||
दरीआउ तू दिहंद तू बिसीआर तू धनी | देहि लेहि एकु तूं दिगर को नही || २ ||
तूं दाना तूं बीनां मैं बीचारू किआ करी | नाम चे सुआमी बखसंद तू हरी || ३ || २ || (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से )
भाव -सार :हे मेरे बादशाह तुम्हारा नाम ही मुझ अंधे की लकड़ी है ,टेक है ,आश्रय है ; मैं निर्धन हूँ और तुच्छ हूँ ,तुम्हारा नाम ही मेरा सहारा है। || १ || रहाउ ||
हे ! अल्लाह ,करीम ,रहीम ! तुम ही अमीर हो ,तुम प्रतिपल मेरे सामने हो (अब मुझे किसी और की जरुरत नहीं )|| १ ||
तुम दया के स्रोत हो ,दाता हो ,अत्यंत धनिक हो | एक तुम ही जीवों को समस्त पदार्थ देते हो ,तुम्ही लेते हो | कोई दूसरा ऐसा नहीं (जो यह सामर्थ्य रखता हो )|| २ ||
हे नामदेव के स्वामी ! तुम ही सब कुछ देने वाले हो ,तुम अन्तर्यामी हो और सबके काम देखने वाले हो | हे हरि ! मैं तुम्हारा कौन -कौन सा गुण व्यक्त करूँ ?|| ३ || २ ||
मै अंधुले की टेक तेरा नाम खुंदकारा | मै ग़रीब मैं मसकीन तेरा नामु है अधारा || १ || रहाउ ||
करीमाँ रहिमां अलाह तू गनीं | हाजरा हजूरि दरि पेसि तू मनीं || १ ||
दरीआउ तू दिहंद तू बिसीआर तू धनी | देहि लेहि एकु तूं दिगर को नही || २ ||
तूं दाना तूं बीनां मैं बीचारू किआ करी | नाम चे सुआमी बखसंद तू हरी || ३ || २ || (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से )
भाव -सार :हे मेरे बादशाह तुम्हारा नाम ही मुझ अंधे की लकड़ी है ,टेक है ,आश्रय है ; मैं निर्धन हूँ और तुच्छ हूँ ,तुम्हारा नाम ही मेरा सहारा है। || १ || रहाउ ||
हे ! अल्लाह ,करीम ,रहीम ! तुम ही अमीर हो ,तुम प्रतिपल मेरे सामने हो (अब मुझे किसी और की जरुरत नहीं )|| १ ||
तुम दया के स्रोत हो ,दाता हो ,अत्यंत धनिक हो | एक तुम ही जीवों को समस्त पदार्थ देते हो ,तुम्ही लेते हो | कोई दूसरा ऐसा नहीं (जो यह सामर्थ्य रखता हो )|| २ ||
हे नामदेव के स्वामी ! तुम ही सब कुछ देने वाले हो ,तुम अन्तर्यामी हो और सबके काम देखने वाले हो | हे हरि ! मैं तुम्हारा कौन -कौन सा गुण व्यक्त करूँ ?|| ३ || २ ||
Comments
Post a Comment