|| महला ३||
फरीदा काली धउली साहिबु सदा है जे को चिति करे | आपणा लाइआ पिरमु न लगई ज लोचै सभु कोइ। एहु पिरमु पिआला ख़सम का जै भावै तै देइ || १३ ||
फरीदा जिन्ह लोइण जगु मोहिआ से लोइण मै डिठु | कजल रेख न सहदिया से पंखी सूई बहिठु || १४ ||
फरीदा कूकेदिआ चांगेदिआ मती देदिआ नित | जो सैतानि वंजाइआ से कित फेरहि चित || १५ ||
फरीदा थीउ पवाही दभु | जे सांई लोहड़ि सभु | इकु छिजहि बिआ लताड़ीअहि | तां साई दै दरि वाड़ीअहि || १६ ||
---सलोक सेख फरीद आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से
भावसार : इस पद में फरीद के बारहवें श्लोक की ध्वनि पर टिप्पणी करते हुए महला ३ (तीसरे गुरुनाक देव ),गुरू अमरदास कहते हैं ,ऐ फरीद यदि मनुष्य दिल लगाकर परमात्मा से प्यार करे तो काले -सफ़ेद बालों (जवानी -बुढ़ापे की अवस्थाओं )का कोई महत्व नहीं | (परमात्मा उसे सदैव ही मिल सकता है )| किंतु प्रेम अपने लगाये नहीं लगता ,ऐसी आकांक्षा तो सभी करते हैं | (वास्तव में ) प्रेम का रंग परमात्मा की अपनी देन है ,जिसे चाहे ,उसे देता है (अर्थात प्रभु -प्रेम के लिए कोई अवस्था निर्धारित नहीं और न ही इस पर किसी का विशेष दावा है || १३ ||
फरीद जी कहते हैं कि जगत को मोह लेने की शक्ति रखने वाले नेत्रों को मैंने देखा है | जो कभी अनजान की मामूली चुभन सहन नहीं करते थे ,वहां आज पक्षी बच्चे दिए बैठे हैं (अर्थात संसार की सुन्दर वस्तुओं का अंत बड़ा भयंकर होता है, ऐसा फरीद जी का अनुभव है )|| १४ ||
फरीद कहते हैं कि चिल्लाते ,पुकारते और समझाते हुए भी जिन लोगों को शैतान ने बिगाड़ रखा है , वे अपनी बुद्धि को क्योंकर स्थिर कर सकते हैं ,अर्थात मोह -माया में फंसे जीवों का वहां से निकलना बड़ा कठिन होता है | | १५ ||
फरीद कहते हैं कि ऐ मनुष्य ,यदि तुम अपने स्वामी परमात्मा से मिलना चाहते हो ,तो मार्ग की दूब की तरह बन जाओ | दूब को पहले काटा जाएगा ,फिर पैरों तले रौंदा जाता है तब कहीं वह परमात्मा के द्वार में प्रवेश पा सकने योग्य होती है | (अर्थात दूब की तरह विनम्र होकर ही प्रभु पाया जाता है । )
विशेष :फरीद को गलत न समझ लिया जाए और बूढ़े हो चुके लोगों में निराशा न छा जाए इसका खुलासा महला तीन करते हैं। परमात्मा से मिलने के लिए कोई उम्र की सीमा तय नहीं है। यहां सच्चा सौदा प्रेम का जो करे सो प्रभु पाए।
दूसरा प्रसंग अपने ज़माने की मशहूर वेश्या का है जिसकी एक झलक पाने को ज़माना तरसता था और जिसने अपनी बांदी को काजल में ज़रा सी किरकिरी आने पर बड़ा फटकारा था उसी की आँखों के कोटर में आज चिड़ियों ने अपने अंडे दे दिये हैं। इस वैश्या के कंकाल ,खोपड़ी पर नज़र पड़ते ही फरीद मार्ग में किसी से पूछ बैठते हैं :ये खोपड़ी किसकी है।"यह उसी मशहूर लोई की है "-ज़वाब मिला। भाव यह है सौंदर्य छीज़ जाता है जोबन ढल जाता है बुढ़ापा फिर बाट जोहता है मृत्यु की इससे पहले उसका सिमरन कर लो।
Guru Nanak dev ji has always been among the most revered saints of the Indian Spiritual world. His love, admiration & bhakti ...
फरीदा काली धउली साहिबु सदा है जे को चिति करे | आपणा लाइआ पिरमु न लगई ज लोचै सभु कोइ। एहु पिरमु पिआला ख़सम का जै भावै तै देइ || १३ ||
फरीदा जिन्ह लोइण जगु मोहिआ से लोइण मै डिठु | कजल रेख न सहदिया से पंखी सूई बहिठु || १४ ||
फरीदा कूकेदिआ चांगेदिआ मती देदिआ नित | जो सैतानि वंजाइआ से कित फेरहि चित || १५ ||
फरीदा थीउ पवाही दभु | जे सांई लोहड़ि सभु | इकु छिजहि बिआ लताड़ीअहि | तां साई दै दरि वाड़ीअहि || १६ ||
---सलोक सेख फरीद आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से
भावसार : इस पद में फरीद के बारहवें श्लोक की ध्वनि पर टिप्पणी करते हुए महला ३ (तीसरे गुरुनाक देव ),गुरू अमरदास कहते हैं ,ऐ फरीद यदि मनुष्य दिल लगाकर परमात्मा से प्यार करे तो काले -सफ़ेद बालों (जवानी -बुढ़ापे की अवस्थाओं )का कोई महत्व नहीं | (परमात्मा उसे सदैव ही मिल सकता है )| किंतु प्रेम अपने लगाये नहीं लगता ,ऐसी आकांक्षा तो सभी करते हैं | (वास्तव में ) प्रेम का रंग परमात्मा की अपनी देन है ,जिसे चाहे ,उसे देता है (अर्थात प्रभु -प्रेम के लिए कोई अवस्था निर्धारित नहीं और न ही इस पर किसी का विशेष दावा है || १३ ||
फरीद जी कहते हैं कि जगत को मोह लेने की शक्ति रखने वाले नेत्रों को मैंने देखा है | जो कभी अनजान की मामूली चुभन सहन नहीं करते थे ,वहां आज पक्षी बच्चे दिए बैठे हैं (अर्थात संसार की सुन्दर वस्तुओं का अंत बड़ा भयंकर होता है, ऐसा फरीद जी का अनुभव है )|| १४ ||
फरीद कहते हैं कि चिल्लाते ,पुकारते और समझाते हुए भी जिन लोगों को शैतान ने बिगाड़ रखा है , वे अपनी बुद्धि को क्योंकर स्थिर कर सकते हैं ,अर्थात मोह -माया में फंसे जीवों का वहां से निकलना बड़ा कठिन होता है | | १५ ||
फरीद कहते हैं कि ऐ मनुष्य ,यदि तुम अपने स्वामी परमात्मा से मिलना चाहते हो ,तो मार्ग की दूब की तरह बन जाओ | दूब को पहले काटा जाएगा ,फिर पैरों तले रौंदा जाता है तब कहीं वह परमात्मा के द्वार में प्रवेश पा सकने योग्य होती है | (अर्थात दूब की तरह विनम्र होकर ही प्रभु पाया जाता है । )
विशेष :फरीद को गलत न समझ लिया जाए और बूढ़े हो चुके लोगों में निराशा न छा जाए इसका खुलासा महला तीन करते हैं। परमात्मा से मिलने के लिए कोई उम्र की सीमा तय नहीं है। यहां सच्चा सौदा प्रेम का जो करे सो प्रभु पाए।
दूसरा प्रसंग अपने ज़माने की मशहूर वेश्या का है जिसकी एक झलक पाने को ज़माना तरसता था और जिसने अपनी बांदी को काजल में ज़रा सी किरकिरी आने पर बड़ा फटकारा था उसी की आँखों के कोटर में आज चिड़ियों ने अपने अंडे दे दिये हैं। इस वैश्या के कंकाल ,खोपड़ी पर नज़र पड़ते ही फरीद मार्ग में किसी से पूछ बैठते हैं :ये खोपड़ी किसकी है।"यह उसी मशहूर लोई की है "-ज़वाब मिला। भाव यह है सौंदर्य छीज़ जाता है जोबन ढल जाता है बुढ़ापा फिर बाट जोहता है मृत्यु की इससे पहले उसका सिमरन कर लो।
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