जितु दिहाड़े धनवरि साहे लए लिखाइ | मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आइ | जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ | साहे लिखे न चलनी जिंदू कूं समझाइ |
सलोक सेख फ़रीद के (आदि श्रीगुरु ग्रन्थ साहब से )
१ ओं..... सतिगुर प्रसादि ||
जितु दिहाड़े धनवरि साहे लए लिखाइ | मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आइ | जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ | साहे लिखे न चलनी जिंदू कूं समझाइ |
जिंदु बहुटी मरणु वरु लै जासी परणाइ | आपण हथी जोलि कै कै गलि लगै धाइ | वालहु निकी पुरसलात कंनी न सुणीआइ | फ़रीदा किड़ी पवंदीई खड़ा न आपु मुहाइ || १ ||
फरीदा दर दरवेसी गाखड़ी चलां दुनिआं भति | बंन्हि उठाइ पोटली किथै वंजा घति || || २ ||
किझु न बुझै किझु न सुझै दुनीआ गुझी भाहि | सांई मेरै चंगा कीता नाही त दझां आहि || ३ ||
फरीदा जे जाणां तिल थोहड़े संमलि बुकु भरी | जे जाणा सहु नंढड़ा तां थोड़ा माणु करी ||४ ||
भाव -सार : फरीद जी कहते हैं ,जिस दिन मनुष्य रूप स्त्री का विवाह है ,वह मुहूर्त (लग्न ,घड़ी )निश्चित है (अर्थात मनुष्य के जन्म लेते ही उसकी मौत का दिन भी निश्चित होता है )|
तिफ़ली के रोने का भेद खुला है बाद -ए -मर्ग ,
आगाज़ में ही रोये थे अंजाम के लिए।
प्रसव के समय बच्चा मृत्यु की पीड़ा का एहसास कर लेता है। उसे पता होता है यह जो जीवन मिला है इसका हश्र क्या होना है।इसीलिए वह रोता है।
फरीद कहते हैं जिस मृत्यु के दूत के बारे में कानों से सुना होता है ,वह आकर मुंह दिखाता है (जैसे स्त्री ने अपने वर के सम्बन्ध में बातें सुनी होती हैं ,विवाह के दिन वह उसका मुंह देखती है )बेचारी जीव आत्मा को हड्डियों को खड़काकर शरीर से अलग किया जाता है। (इस अवसर के लिए पहले से ही )जीवात्मा को समझा लो कि मुहूर्त नहीं टलता ,यथावसर चलना ही होगा (जैसे माता पिता कन्या को विवाह की बात बताते और मानसिक तौर से तैयार करते हैं )| जीवात्मा रुपी दुल्हन को यमदूत रुपी दूल्हे को निश्चित ही ब्याहकर ले जाना है | अपने हाथों जीवात्मा को विदा करके (यह शरीर )फिर दौड़ कर किसके गले लगेगा ?(उसमें की सत्या जाने के बाद क्या वह किसी की शरण ले सकता है ?)ऐ मनुष्य ,क्या तुमने कानों से नहीं सुना कि नरक की अग्नि पर बना पुल (पुलसरात = पुल सिरात )बाल से भी सूक्ष्म है। (नीचे कानों में नरक की )आवाज़ें आती हैं | फरीद जी कहते हैं कि इसलिए ,ऐ मनुष्य ,तुम अपने को यहां खड़े -खड़े न लुटाओ (अर्थात भोग विलास में पड़के आत्म -नाश न करो )|| १ ||
फरीद जी कहते हैं कि परमात्मा के द्वार पर दरवेश (फ़क़ीर )बनना बड़ा कठिन है ,मैं तो संसार की भांति चल रहा हूँ | मैंने सांसारिकता की गठरी बांधकर उठा रखी है ,अब मैं इसे कहाँ और कैसे छोड़ जाऊँ ?(अर्थात दुनियादारी से छुटकारा कैसे पाऊं ?)|| २ ||
यह संसार तो छिपी अग्नि की तरह कुछ सुझाई -बुझाई ही नहीं पड़ता | मेरे स्वामी (परमात्मा )ने अच्छा ही किया (जो मेरे में वैराग्य पैदा कर दिया ,अन्यथा )मैं भी भूल से इस आग में जल जाता। || ३ ||
फरीद जी कहते हैं कि यदि मुझे पता हो कि (श्वास रुपी )तिल कम हैं ,तो मैं सावधानी से मुठ्ठी भरूँ (अर्थात सावधानी पूर्वक जीवन बिताऊँ )|| यदि मुझे पता हो कि मेरा पति -परमेश्वर अप्रौढ़ (बे -परवाह )है ,तो मैं उसके सम्मुख अपनी जवानी का मान न करूँ (अर्थात बे -परवाह परमात्मा के सामने अभिमान नहीं ,समर्पण अपेक्षित है )|| ४ ||
विशेष :पंजाब के कुछ इलाकों में विवाह के अवसर पर आज भी तिलवड़े खिंडाये जाते हैं दुल्हन के गृह प्रवेश के समय। इसीलिए यहां फरीद तिलों की बात करते हैं।
सूफी परम्परा के शीर्ष संत कवि हैं फरीद। एक तरफ इनका सम्बन्ध शाही घराने से है तो दूसरी तरफ ये पैगमबर मोहम्मद साहब के दामाद अली साहब के भी निकट सम्बन्धी ठहरते हैं। सूफी वाद में जीव -आत्मा को बहुरिया समझा गया है। कहीं -कहीं परमात्मा को ही बहुरिया (दुल्हन ) समझा गया है। आत्मा ,परमात्मा ज्ञान प्राप्त होने पर दो रह भी कहाँ जाते हैं। फरीद का इश्क रूहानी है। इश्क हकीकी है।ग़ज़ल भी आत्मा परमात्मा का संवाद है आशिक और माशूक की बात-चीत है विरह वेदना का उद्वेग है।
पीहर को जीव -आत्मा रुपी स्त्री का इह लोक और सुसराल को परलोक समझा गया है सूफीवाद के तहत।
https://www.youtube.com/watch?v=NMRL-12fSmQ
१ ओं..... सतिगुर प्रसादि ||
जितु दिहाड़े धनवरि साहे लए लिखाइ | मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आइ | जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ | साहे लिखे न चलनी जिंदू कूं समझाइ |
जिंदु बहुटी मरणु वरु लै जासी परणाइ | आपण हथी जोलि कै कै गलि लगै धाइ | वालहु निकी पुरसलात कंनी न सुणीआइ | फ़रीदा किड़ी पवंदीई खड़ा न आपु मुहाइ || १ ||
फरीदा दर दरवेसी गाखड़ी चलां दुनिआं भति | बंन्हि उठाइ पोटली किथै वंजा घति || || २ ||
किझु न बुझै किझु न सुझै दुनीआ गुझी भाहि | सांई मेरै चंगा कीता नाही त दझां आहि || ३ ||
फरीदा जे जाणां तिल थोहड़े संमलि बुकु भरी | जे जाणा सहु नंढड़ा तां थोड़ा माणु करी ||४ ||
भाव -सार : फरीद जी कहते हैं ,जिस दिन मनुष्य रूप स्त्री का विवाह है ,वह मुहूर्त (लग्न ,घड़ी )निश्चित है (अर्थात मनुष्य के जन्म लेते ही उसकी मौत का दिन भी निश्चित होता है )|
तिफ़ली के रोने का भेद खुला है बाद -ए -मर्ग ,
आगाज़ में ही रोये थे अंजाम के लिए।
प्रसव के समय बच्चा मृत्यु की पीड़ा का एहसास कर लेता है। उसे पता होता है यह जो जीवन मिला है इसका हश्र क्या होना है।इसीलिए वह रोता है।
फरीद कहते हैं जिस मृत्यु के दूत के बारे में कानों से सुना होता है ,वह आकर मुंह दिखाता है (जैसे स्त्री ने अपने वर के सम्बन्ध में बातें सुनी होती हैं ,विवाह के दिन वह उसका मुंह देखती है )बेचारी जीव आत्मा को हड्डियों को खड़काकर शरीर से अलग किया जाता है। (इस अवसर के लिए पहले से ही )जीवात्मा को समझा लो कि मुहूर्त नहीं टलता ,यथावसर चलना ही होगा (जैसे माता पिता कन्या को विवाह की बात बताते और मानसिक तौर से तैयार करते हैं )| जीवात्मा रुपी दुल्हन को यमदूत रुपी दूल्हे को निश्चित ही ब्याहकर ले जाना है | अपने हाथों जीवात्मा को विदा करके (यह शरीर )फिर दौड़ कर किसके गले लगेगा ?(उसमें की सत्या जाने के बाद क्या वह किसी की शरण ले सकता है ?)ऐ मनुष्य ,क्या तुमने कानों से नहीं सुना कि नरक की अग्नि पर बना पुल (पुलसरात = पुल सिरात )बाल से भी सूक्ष्म है। (नीचे कानों में नरक की )आवाज़ें आती हैं | फरीद जी कहते हैं कि इसलिए ,ऐ मनुष्य ,तुम अपने को यहां खड़े -खड़े न लुटाओ (अर्थात भोग विलास में पड़के आत्म -नाश न करो )|| १ ||
फरीद जी कहते हैं कि परमात्मा के द्वार पर दरवेश (फ़क़ीर )बनना बड़ा कठिन है ,मैं तो संसार की भांति चल रहा हूँ | मैंने सांसारिकता की गठरी बांधकर उठा रखी है ,अब मैं इसे कहाँ और कैसे छोड़ जाऊँ ?(अर्थात दुनियादारी से छुटकारा कैसे पाऊं ?)|| २ ||
यह संसार तो छिपी अग्नि की तरह कुछ सुझाई -बुझाई ही नहीं पड़ता | मेरे स्वामी (परमात्मा )ने अच्छा ही किया (जो मेरे में वैराग्य पैदा कर दिया ,अन्यथा )मैं भी भूल से इस आग में जल जाता। || ३ ||
फरीद जी कहते हैं कि यदि मुझे पता हो कि (श्वास रुपी )तिल कम हैं ,तो मैं सावधानी से मुठ्ठी भरूँ (अर्थात सावधानी पूर्वक जीवन बिताऊँ )|| यदि मुझे पता हो कि मेरा पति -परमेश्वर अप्रौढ़ (बे -परवाह )है ,तो मैं उसके सम्मुख अपनी जवानी का मान न करूँ (अर्थात बे -परवाह परमात्मा के सामने अभिमान नहीं ,समर्पण अपेक्षित है )|| ४ ||
विशेष :पंजाब के कुछ इलाकों में विवाह के अवसर पर आज भी तिलवड़े खिंडाये जाते हैं दुल्हन के गृह प्रवेश के समय। इसीलिए यहां फरीद तिलों की बात करते हैं।
सूफी परम्परा के शीर्ष संत कवि हैं फरीद। एक तरफ इनका सम्बन्ध शाही घराने से है तो दूसरी तरफ ये पैगमबर मोहम्मद साहब के दामाद अली साहब के भी निकट सम्बन्धी ठहरते हैं। सूफी वाद में जीव -आत्मा को बहुरिया समझा गया है। कहीं -कहीं परमात्मा को ही बहुरिया (दुल्हन ) समझा गया है। आत्मा ,परमात्मा ज्ञान प्राप्त होने पर दो रह भी कहाँ जाते हैं। फरीद का इश्क रूहानी है। इश्क हकीकी है।ग़ज़ल भी आत्मा परमात्मा का संवाद है आशिक और माशूक की बात-चीत है विरह वेदना का उद्वेग है।
पीहर को जीव -आत्मा रुपी स्त्री का इह लोक और सुसराल को परलोक समझा गया है सूफीवाद के तहत।
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