देखु फ़रीद जु थीआ दाड़ी होई भूर | अगहू नेड़ा आइआ पिछा रहिआ दूरि || ९ ||
देखु फरीदा कि थीआ सकर कोई विसु | सांई बाझहु आपणे वेदंण कहीए किसु || १० ||
फ़रीदा अखी देखि पतीणीआं सुणि सुणि रीणे कंन | साख पकंदी आईआ होर करेंदी वंन || ११ ||
फ़रीदा कालीं जिनि न राविआ धउली रावै कोइ | करि सांई सिउ पिरहड़ी रंगु नवेला होइ || १२ ||
--------सलोक सेख फ़रीद के आदि श्रीगुरु ग्रन्थ साहब से
भावसार :हे फ़रीद ,देखो तुम्हारे साथ क्या बीती है ,दाढ़ी सफ़ेद हो गई है | आगे मृत्यु समीप आ रही है ,जीवन का आरम्भ (कुछ कर सकने के अवसर )दूर हो गए है (अर्थात मृत्यु निकट है ,अब भी कोई पुण्य कर लो )|| ९ ||
ऐ फ़रीद ,देखो तुम्हारे साथ क्या बीती है ,तुम्हारे लिए शक्कर भी विष -समान हो गई है | (अर्थात भोग- विलास ,विषय- वासना की मिठाई (कथित सुख )अब विष के समान हो गई इसलिए की शरीर बूढ़ा हो गया वासना बूढ़ी नहीं हुई। )बुढ़ापे का यह दुःख मैं अपने स्वामी के बिना किससे कहूँ ? || १० ||
फरीद जी कहते हैं मेरी आँखों की ज्योति देख -देखकर (दुनियावी चीज़ों को )विषय वासना के साज़ो समान द्रव्य को देख देख कर ही छीज गई ,श्रवण शक्ति भी क्षीण हो गई विषय वासना के किस्से सुनते भोगते श्रवण रस , कर्ण -रस भोगते भोगते। यह शरीर रुपी खेती अब पक रही है ,तभी तो धीरे -धीरे अपना पूरा रंग ही बदल रही है। || ११ ||
फरीद जी कहते हैं जिसने यौवन में (काले बाल रहते )इश्क हकीकी नहीं किया वह बुढ़ापे में क्या बंदगी करेगा। अच्छा है यदि तुम स्वामी से प्रीती करो ,उसी के परिणाम से अब भी नित्यनवीन आनंद मिलेगा | (परमात्मा से प्यार करने वाला नित्य नवीनता अनुभव करता है ,उस पर बुढ़ापे का निराशाजनक प्रभाव नहीं होता। )|| १२ ||
विशेष :फरीद ने जो कुछ कहा है रमझ में कहा है। सूफीवाद का रहस्यवाद यही रमझ है। दरअसल फरीद यहां यह कहना चाहते हैं यह सन्देश दे रहे हैं ,यदि मनुष्य दिल लगाकर परमात्मा से प्यार करे तो उम्र का काले सफ़ेद बालों का कोई महत्व नहीं ,परमात्मा उसे सदैव मिल सकता है। किंतु प्रेम अपने लगाए नहीं लगता ,ऐसी आकांक्षा तो सभी करते हैं। वास्तव में प्रेम का रंग परमात्मा की अपनी देन है, बख्शीस है।जिसे चाहे उसे देता है अर्थात प्रभु प्रेम के लिए कोई अवस्था जीवन के चरण फेज़िज़ निर्धारित नहीं करता और न ही इस पर किसी का विशेष दावा है।
देखु फरीदा कि थीआ सकर कोई विसु | सांई बाझहु आपणे वेदंण कहीए किसु || १० ||
फ़रीदा अखी देखि पतीणीआं सुणि सुणि रीणे कंन | साख पकंदी आईआ होर करेंदी वंन || ११ ||
फ़रीदा कालीं जिनि न राविआ धउली रावै कोइ | करि सांई सिउ पिरहड़ी रंगु नवेला होइ || १२ ||
--------सलोक सेख फ़रीद के आदि श्रीगुरु ग्रन्थ साहब से
भावसार :हे फ़रीद ,देखो तुम्हारे साथ क्या बीती है ,दाढ़ी सफ़ेद हो गई है | आगे मृत्यु समीप आ रही है ,जीवन का आरम्भ (कुछ कर सकने के अवसर )दूर हो गए है (अर्थात मृत्यु निकट है ,अब भी कोई पुण्य कर लो )|| ९ ||
ऐ फ़रीद ,देखो तुम्हारे साथ क्या बीती है ,तुम्हारे लिए शक्कर भी विष -समान हो गई है | (अर्थात भोग- विलास ,विषय- वासना की मिठाई (कथित सुख )अब विष के समान हो गई इसलिए की शरीर बूढ़ा हो गया वासना बूढ़ी नहीं हुई। )बुढ़ापे का यह दुःख मैं अपने स्वामी के बिना किससे कहूँ ? || १० ||
फरीद जी कहते हैं मेरी आँखों की ज्योति देख -देखकर (दुनियावी चीज़ों को )विषय वासना के साज़ो समान द्रव्य को देख देख कर ही छीज गई ,श्रवण शक्ति भी क्षीण हो गई विषय वासना के किस्से सुनते भोगते श्रवण रस , कर्ण -रस भोगते भोगते। यह शरीर रुपी खेती अब पक रही है ,तभी तो धीरे -धीरे अपना पूरा रंग ही बदल रही है। || ११ ||
फरीद जी कहते हैं जिसने यौवन में (काले बाल रहते )इश्क हकीकी नहीं किया वह बुढ़ापे में क्या बंदगी करेगा। अच्छा है यदि तुम स्वामी से प्रीती करो ,उसी के परिणाम से अब भी नित्यनवीन आनंद मिलेगा | (परमात्मा से प्यार करने वाला नित्य नवीनता अनुभव करता है ,उस पर बुढ़ापे का निराशाजनक प्रभाव नहीं होता। )|| १२ ||
विशेष :फरीद ने जो कुछ कहा है रमझ में कहा है। सूफीवाद का रहस्यवाद यही रमझ है। दरअसल फरीद यहां यह कहना चाहते हैं यह सन्देश दे रहे हैं ,यदि मनुष्य दिल लगाकर परमात्मा से प्यार करे तो उम्र का काले सफ़ेद बालों का कोई महत्व नहीं ,परमात्मा उसे सदैव मिल सकता है। किंतु प्रेम अपने लगाए नहीं लगता ,ऐसी आकांक्षा तो सभी करते हैं। वास्तव में प्रेम का रंग परमात्मा की अपनी देन है, बख्शीस है।जिसे चाहे उसे देता है अर्थात प्रभु प्रेम के लिए कोई अवस्था जीवन के चरण फेज़िज़ निर्धारित नहीं करता और न ही इस पर किसी का विशेष दावा है।
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