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फ़रीदा राती बडीआँ धुखि धुखि उठनि पास |धिगु तिन्हा दा जीविआ जिना विडाणी आस || (२१ )||

फ़रीदा राती बडीआँ धुखि धुखि उठनि पास |धिगु तिन्हा दा जीविआ जिना विडाणी आस || (२१ )||

फ़रीदा जे मै होदा वारिआ मिता आइड़िआं | हेड़ा जलै मजीठ जिउ उपरि अंगारा || २२ ||

फ़रीदा लोड़ै दाख़ बिजउरीआं किकरि बीजै जटु | हंडै उन कताइदा लोड़ै पटु || २३ ||

फरीदा गलीए चिकड़ु दूरि घरु नालि पिआरे नेहु | चलात भिजै कंबली रहां त तुटै नहु || २४ ||

                                               ------- आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से

भावसार : 

हे फरीद ,(प्रियतम प्यारे से वियोग की अवस्था में )रातें कटते नहीं कटतीं लम्बी हो गईं हैं ,और शरीर दर्द करने लगा है (सो -सोकर )| किन्तु उनके जीवन पर धिक्कार है ,जो पर -आशा (किसी और प्रेमी की आशा )करने लगते हैं (अर्थात अपने प्रीतम को भुला कर रात की रँगरलियाँ ,अभिसार दूसरों के संग  करने लगते हैं)|| २१ || 

फरीद जी कहते हैं कि यदि मैं (अपने घर आये हुए )मित्रों ,साधू पुरुषों से कुछ छिपाऊं ,तो मेरा शरीर मजीठ रंग के दहकते धधकते अंगारों में जल जाए  | भाव यह है कि सज्जन पुरुषों के पधारने पर समर्पण का मार्ग ही श्रेष्ठ है ,आडम्बर पाखंड नहीं चलता। सज्जन पुरुष भांप लेते हैं भाव को नीयत को। || २२ || 

फरीद जी कहते हैं कि यदि किसान बबूल बीज बोकर अंगूर खाने की आशा करे ,तो उसकी स्थिति उस व्यक्ति के समान होगी ,जो जीवन भर ऊँन कातता है किन्तु रेशमी वस्त्र पहनने की इच्छा करता है || २३ || 

फरीद अपनी प्रेममयी (प्रेमिल )स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गलियों में कीचड़ है ,(प्रियतम का )घर दूर है ,किंतु उससे लगाव गहरा है | प्रियतम को मिलने  जाऊँ  तो मेरी ओढ़नी वर्षा के कारण भीगती है और यदि इस कठिनाई के कारण नहीं जाता ,तो प्यार को लाज आती है ,मेरा प्यार लज्जित होता है ,रुसवा होता है ,नेह की डोर टूटती है | (अभिप्राय यह है कि प्रेम मार्ग के विघ्नों का कोई महत्व नहीं मानता -अगले दोहे में यह बात  स्पष्ट की है )|| २४ ||
 

Comments

  1. मुझे लगता है पंजाबी भाषा में दोहा है । लेकिन भाषा से अनभिज्ञ होने की वजह से अपनी राय रखने में असमर्थ हूँ ।

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    1. समझ में आ गया । बहुत सुन्दर दोहा है । बधाई आपको ।

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