देव गंधारी महला ९ (आदिगुरु श्री ग्रन्थ साहब से)
सभि किछु जीवत को बिवहार | मात पिता भाई सुत बंधप अरु फुनि ग्रिह की नारि || १ || रहाउ ||
तन ते प्रान होत जब निआरे टेरत प्रेति पुकारि | आध घरी कोऊ नहि राखै घरि ते देत निकारि || १ ||
ि म्रगत्रिसना जिउ जग रचना यह देखहु रिदै बिचारि | कहु नानक भजु राम नाम नित जाते होत उधार || २ ||
भावसार :हे भाई !माँ ,बाप ,भाई ,पुत्र ,रिश्तेदार तथा पत्नी भी -सब कुछ जीवित रहते हुए (व्यक्तियों का )मेल -मिलाप है। || १ || रहाउ ||
हे भाई ! जब आत्मा शरीर से अलग हो जाती है ,तो सगे -संबंधी उच्च स्वर से कहते हैं कि यह मर चुका है ,गुज़र चुका है। कोई भी संबंधी आधी घड़ी के लिए भी घर में नहीं रखता ,घर से बाहर निकाल देते हैं || १ || रहाउ ||
हे भाई !अपने हृदय में विचार कर देख लो ,यह सांसारिक क्रीड़ा मृगतृष्णा के तुल्य है | नानक का कथन है कि हे भाई ! सदा परमात्मा के नाम का भजन किया करो ,जिसके प्रभाव से संसार से उद्धार हो जाता है। || २ ||
सभि किछु जीवत को बिवहार | मात पिता भाई सुत बंधप अरु फुनि ग्रिह की नारि || १ || रहाउ ||
तन ते प्रान होत जब निआरे टेरत प्रेति पुकारि | आध घरी कोऊ नहि राखै घरि ते देत निकारि || १ ||
ि म्रगत्रिसना जिउ जग रचना यह देखहु रिदै बिचारि | कहु नानक भजु राम नाम नित जाते होत उधार || २ ||
भावसार :हे भाई !माँ ,बाप ,भाई ,पुत्र ,रिश्तेदार तथा पत्नी भी -सब कुछ जीवित रहते हुए (व्यक्तियों का )मेल -मिलाप है। || १ || रहाउ ||
हे भाई ! जब आत्मा शरीर से अलग हो जाती है ,तो सगे -संबंधी उच्च स्वर से कहते हैं कि यह मर चुका है ,गुज़र चुका है। कोई भी संबंधी आधी घड़ी के लिए भी घर में नहीं रखता ,घर से बाहर निकाल देते हैं || १ || रहाउ ||
हे भाई !अपने हृदय में विचार कर देख लो ,यह सांसारिक क्रीड़ा मृगतृष्णा के तुल्य है | नानक का कथन है कि हे भाई ! सदा परमात्मा के नाम का भजन किया करो ,जिसके प्रभाव से संसार से उद्धार हो जाता है। || २ ||
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