१ ओङ्कार ..सतिगुर प्रसादि || रागु बिहागड़ा महला ९ ||
हरि की गति नहि कोऊ जानै | जोगी जती तपी पचि हारे अरु बहु लोग सिआने || १ || रहाउ ||
छिन महि राउ रंक कउ करई राउ रंक करि डारे | रीते भरे भरे सखनावै यह ताको बिवहारे || १ ||
अपनी माइआ आपि पसारी आपहि देखन हारा | नाना रूप धरे बहुरंगी सभ ते रहै निआरा || २ ||
अगनत अपारु अलख निरंजन जिह सभ जगु भरमाइओ | सगल भरम तजि नानक प्राणी चरनि ताहि चितु लाइओ || ३ || १ || २ ||
भावसार :हे भाई !अनेक योगी ,तपस्वी तथा अन्य बहुत से बुद्धिमान मनुष्य साधना करके हार गए ,लेकिन कोई भी मनुष्य यह नहीं जान सकता कि परमात्मा कैसा है || १ || रहाउ ||
हे भाई ! वह परमात्मा एक क्षण में निर्धन को राजा बना देता है और राजा को निर्धन बना देता है। खाली बर्तनों को भर देता है और भरे हुए बर्तनों को खाली कर देता है -यह उसका नित्य प्रति का कार्य है। || १ ||
इस दृश्यमान जगत रुपी तमाशे में परमात्मा ने अपनी माया फैलाई हुई है वह आप ही इसकी देखभाल कर रहा है। वह अनेक रंगों का स्वामी -प्रभु कई प्रकार के रूप धारण कर लेता है और सब रूपों से अलग भी रहता है || २ ||
हे भाई ! उस परमात्मा के गुण गणना से परे हैं ,वह अनंत ,अदृश्य तथा निर्लिप्त है ,उस परमात्मा ने ही सारे जगत को दुविधा में डाला हुआ है। नानक का कथन है कि जिस मनुष्य ने उसके चरणों में मन लगाया है ,वह माया की दुविधाएं त्यागकर ही लगाया है। || ३ || १ || २ ||
हरि की गति नहि कोऊ जानै | जोगी जती तपी पचि हारे अरु बहु लोग सिआने || १ || रहाउ ||
छिन महि राउ रंक कउ करई राउ रंक करि डारे | रीते भरे भरे सखनावै यह ताको बिवहारे || १ ||
अपनी माइआ आपि पसारी आपहि देखन हारा | नाना रूप धरे बहुरंगी सभ ते रहै निआरा || २ ||
अगनत अपारु अलख निरंजन जिह सभ जगु भरमाइओ | सगल भरम तजि नानक प्राणी चरनि ताहि चितु लाइओ || ३ || १ || २ ||
भावसार :हे भाई !अनेक योगी ,तपस्वी तथा अन्य बहुत से बुद्धिमान मनुष्य साधना करके हार गए ,लेकिन कोई भी मनुष्य यह नहीं जान सकता कि परमात्मा कैसा है || १ || रहाउ ||
हे भाई ! वह परमात्मा एक क्षण में निर्धन को राजा बना देता है और राजा को निर्धन बना देता है। खाली बर्तनों को भर देता है और भरे हुए बर्तनों को खाली कर देता है -यह उसका नित्य प्रति का कार्य है। || १ ||
इस दृश्यमान जगत रुपी तमाशे में परमात्मा ने अपनी माया फैलाई हुई है वह आप ही इसकी देखभाल कर रहा है। वह अनेक रंगों का स्वामी -प्रभु कई प्रकार के रूप धारण कर लेता है और सब रूपों से अलग भी रहता है || २ ||
हे भाई ! उस परमात्मा के गुण गणना से परे हैं ,वह अनंत ,अदृश्य तथा निर्लिप्त है ,उस परमात्मा ने ही सारे जगत को दुविधा में डाला हुआ है। नानक का कथन है कि जिस मनुष्य ने उसके चरणों में मन लगाया है ,वह माया की दुविधाएं त्यागकर ही लगाया है। || ३ || १ || २ ||
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