सोरठि महला ९
जो नरु दुःख मै दुखु नही मानै | सुख सनेहु अरु भै नही जाकै कंचन माटी मानै || १ || रहाउ ||
नह निंदिआ नह उसतति जाकै लोभु अभिमाना | हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना || १ ||
आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहै निरासा | कामु क्रोधु जिह परसै नाहनि तिह घटि ब्रह्म निवासा || २ ||
गुर किरपा जिह नर कउ कीनी तिह इह जुगति पछानी | नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ जिउ पानी संगि पानी || ३ ||
भावसार :
हे भाई !जो मनुष्य दुखों में घबराता नहीं ,जिसके हृदय में सुखों के प्रति मोह नहीं और जो सोने को मिट्टी तुल्य समझता है (वही परमात्मा को अपने भीतर महसूसता है )|| १ || रहाउ ||
हे भाई ! जिस मनुष्य के भीतर किसी की निंदा -चुगली नहीं ,खुशामद नहीं ,लोभ मोह और अहंकार नहीं ; जो मनुष्य सुख और दुःख से निर्लिप्त रहता है ,जिसे आदर -अनादर स्पर्श नहीं करते (वही प्रभु को अपने भीतर महसूस करता है )|| १ ||
जो मनुष्य आशाओं और उम्मीदों को त्याग देता है , जगत से निर्लिप्त रहता है ,जिसे न काम वासना स्पर्श कर सकती है , न क्रोध स्पर्श कर सकता है ,उस मनुष्य के हृदय में परमात्मा का निवास हो जाता है || २ ||
नानक का कथन है कि जिस मनुष्य पर गुरु ने कृपा की , उसने ही जीवन की सही जांच की है | वह मनुष्य प्रभु से इस प्रकार ऐक्य प्राप्त कर लेता है जैसे पानी,पानी से मिल जाता है। || ३ || ११ ||
जो नरु दुःख मै दुखु नही मानै | सुख सनेहु अरु भै नही जाकै कंचन माटी मानै || १ || रहाउ ||
नह निंदिआ नह उसतति जाकै लोभु अभिमाना | हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना || १ ||
आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहै निरासा | कामु क्रोधु जिह परसै नाहनि तिह घटि ब्रह्म निवासा || २ ||
गुर किरपा जिह नर कउ कीनी तिह इह जुगति पछानी | नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ जिउ पानी संगि पानी || ३ ||
भावसार :
हे भाई !जो मनुष्य दुखों में घबराता नहीं ,जिसके हृदय में सुखों के प्रति मोह नहीं और जो सोने को मिट्टी तुल्य समझता है (वही परमात्मा को अपने भीतर महसूसता है )|| १ || रहाउ ||
हे भाई ! जिस मनुष्य के भीतर किसी की निंदा -चुगली नहीं ,खुशामद नहीं ,लोभ मोह और अहंकार नहीं ; जो मनुष्य सुख और दुःख से निर्लिप्त रहता है ,जिसे आदर -अनादर स्पर्श नहीं करते (वही प्रभु को अपने भीतर महसूस करता है )|| १ ||
जो मनुष्य आशाओं और उम्मीदों को त्याग देता है , जगत से निर्लिप्त रहता है ,जिसे न काम वासना स्पर्श कर सकती है , न क्रोध स्पर्श कर सकता है ,उस मनुष्य के हृदय में परमात्मा का निवास हो जाता है || २ ||
नानक का कथन है कि जिस मनुष्य पर गुरु ने कृपा की , उसने ही जीवन की सही जांच की है | वह मनुष्य प्रभु से इस प्रकार ऐक्य प्राप्त कर लेता है जैसे पानी,पानी से मिल जाता है। || ३ || ११ ||
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