सोरठि महला ९ (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से ) प्रीतम जानि लेहु मन माही | अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही || १ || सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै | बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै || १ || घर की नारि बहुतु हित जा सिउ सदा रहत संग लागी | जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी || २ || इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ | अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ || ३ || १२ || १३९ ||
सोरठि महला ९ (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से )
प्रीतम जानि लेहु मन माही | अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही || १ ||
सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै | बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै || १ ||
घर की नारि बहुतु हित जा सिउ सदा रहत संग लागी | जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी || २ ||
इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ | अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ || ३ || १२ || १३९ ||
भावसार :
हे मित्र ! मन में यह बात निश्चित समझ लो कि सारा संसार अपने सुख के साथ बंधा है | कोई भी किसी का साथी नहीं बनता | | १ || रहाउ ||
हे दोस्त ! सुख के दिनों में कितने ही दोस्त -मित्र मिलकर बैठते हैं और संपन्न व्यक्ति को चारों ओर से घेरे रखते हैं ; किन्तु जब उस पर मुसीबत पड़ती है तो सब साथ छोड़ जाते हैं ,कोई भी उसके निकट नहीं आता || १ ||
हे मित्र ! पत्नी (भी )जिसके साथ असीम नेह होता है , जो सदा पति के साथ लगी रहती है ; (वह भी ) जिस वक्त जीवात्मा इसे (शरीर )को छोड़ जाता है ,पत्नी इससे परे हट जाती है (कि यह मर चुका है )|| २ ||
नानक का कथन है कि इस दुनिया का यही व्यवहार है ,इसी के साथ मनुष्य का लगाव है | लेकिन हे मित्र ! अंतिम समय में परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई सहायक नहीं होता || ३ || १२ || १३९ ||
प्रीतम जानि लेहु मन माही | अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही || १ ||
सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै | बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै || १ ||
घर की नारि बहुतु हित जा सिउ सदा रहत संग लागी | जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी || २ ||
इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ | अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ || ३ || १२ || १३९ ||
भावसार :
हे मित्र ! मन में यह बात निश्चित समझ लो कि सारा संसार अपने सुख के साथ बंधा है | कोई भी किसी का साथी नहीं बनता | | १ || रहाउ ||
हे दोस्त ! सुख के दिनों में कितने ही दोस्त -मित्र मिलकर बैठते हैं और संपन्न व्यक्ति को चारों ओर से घेरे रखते हैं ; किन्तु जब उस पर मुसीबत पड़ती है तो सब साथ छोड़ जाते हैं ,कोई भी उसके निकट नहीं आता || १ ||
हे मित्र ! पत्नी (भी )जिसके साथ असीम नेह होता है , जो सदा पति के साथ लगी रहती है ; (वह भी ) जिस वक्त जीवात्मा इसे (शरीर )को छोड़ जाता है ,पत्नी इससे परे हट जाती है (कि यह मर चुका है )|| २ ||
नानक का कथन है कि इस दुनिया का यही व्यवहार है ,इसी के साथ मनुष्य का लगाव है | लेकिन हे मित्र ! अंतिम समय में परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई सहायक नहीं होता || ३ || १२ || १३९ ||
जय हो
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