सारंग महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रन्थ साहब से )
मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ | बिखिआ सकति रहिओ निस बासुरे कीनो मो अपनो भाइओ || १ ||
गुर उपदेस सुनिओ नहि काननि परदारा लपटाइओ | परनिंदिआ कारनि बहु धावत समझिओ नह समझाइओ || १ ||
कहा कहउ मैं अपनी करनी जिह बिधि जनमु गवाइओ | कहि नानक सभ अउगन मो मै राखी लेहु सरनाइओ || २ || ४ || ३ || १३ || ४ || १५९ ||
भावसार
तुमने कभी मन -लगाकर प्रभु का गुण नहीं गाया | रात -दिन विषयासक्त रहे और स्वेच्छाचरण करते रहे || १ || रहाउ ||
अपने कानों से गुरु का उपदेस नहीं सुना पराई स्त्री में आसक्त रहे | पर -निंदा में रत होकर प्रसन्न होते रहे ,समझाने पर भी नहीं समझे। || १ ||
अपने कर्मों को मैं क्या बताऊँ कि मैं कैसे जन्म बिता रहा हूँ। गुरु नानक कहते हैं कि मुझमें सब अवगुण मौजूद हैं ,(हे प्रभु ,दया करके मुझे )अपनी शरण में संरक्षण दो। || २ || ४ || ३ || १३ || १३९|| ४ || १५९ ||
मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ | बिखिआ सकति रहिओ निस बासुरे कीनो मो अपनो भाइओ || १ ||
गुर उपदेस सुनिओ नहि काननि परदारा लपटाइओ | परनिंदिआ कारनि बहु धावत समझिओ नह समझाइओ || १ ||
कहा कहउ मैं अपनी करनी जिह बिधि जनमु गवाइओ | कहि नानक सभ अउगन मो मै राखी लेहु सरनाइओ || २ || ४ || ३ || १३ || ४ || १५९ ||
भावसार
तुमने कभी मन -लगाकर प्रभु का गुण नहीं गाया | रात -दिन विषयासक्त रहे और स्वेच्छाचरण करते रहे || १ || रहाउ ||
अपने कानों से गुरु का उपदेस नहीं सुना पराई स्त्री में आसक्त रहे | पर -निंदा में रत होकर प्रसन्न होते रहे ,समझाने पर भी नहीं समझे। || १ ||
अपने कर्मों को मैं क्या बताऊँ कि मैं कैसे जन्म बिता रहा हूँ। गुरु नानक कहते हैं कि मुझमें सब अवगुण मौजूद हैं ,(हे प्रभु ,दया करके मुझे )अपनी शरण में संरक्षण दो। || २ || ४ || ३ || १३ || १३९|| ४ || १५९ ||
Comments
Post a Comment