टोडी महला ९ (आदिश्री गुरु ग्रन्थ साहब से )
एकोंकार .......सतिगुर प्रसादि ||
कहउ कहा अपनी अधमाई | उरझिओ कनक कामनी के रस नह कीरति प्रभ गाई || १ ||
जग झूठै कउ साचु जानिकै ता सिउ रुच उपजाई। दीनबंधु सिमरिओ नही कबहू होत जु संगि सहाई || १ ||
मगन रहिओ माइआ मै निस दिनि छुटी न मनकी काई | कहि नानक अब नाहि अनत गति बिनु हरि की सरनाई || २ || ३१ ||
भावसार :
हे प्रभो !मैं अपनी क्या- क्या अधमता वर्णन करूँ ?क्योंकि मैं तो निरंतर कनक और कामिनी (धन और स्त्री )के आनंद में ही उलझा रहा | कभी प्रभु का गुणगान नहीं किया || १ ||रहाउ ||
इस झूठे संसार को सत्य मानकर इसमें ही अपनी रूचि बनाए रखी | सदा सहायक दीन -बंधु प्रभु का कभी स्मरण नहीं किया || १ ||
मैं सदा ही माया में मग्न रहा ,इसीलिए मन की मलिनता दूर नहीं हो सकी | नानक कहते हैं कि अब भगवान् की शरण के बिना अन्य कोई गति (चारा )नहीं || २ || ३१ ||
सत्श्रीअकाल !
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एकोंकार .......सतिगुर प्रसादि ||
कहउ कहा अपनी अधमाई | उरझिओ कनक कामनी के रस नह कीरति प्रभ गाई || १ ||
जग झूठै कउ साचु जानिकै ता सिउ रुच उपजाई। दीनबंधु सिमरिओ नही कबहू होत जु संगि सहाई || १ ||
मगन रहिओ माइआ मै निस दिनि छुटी न मनकी काई | कहि नानक अब नाहि अनत गति बिनु हरि की सरनाई || २ || ३१ ||
भावसार :
हे प्रभो !मैं अपनी क्या- क्या अधमता वर्णन करूँ ?क्योंकि मैं तो निरंतर कनक और कामिनी (धन और स्त्री )के आनंद में ही उलझा रहा | कभी प्रभु का गुणगान नहीं किया || १ ||रहाउ ||
इस झूठे संसार को सत्य मानकर इसमें ही अपनी रूचि बनाए रखी | सदा सहायक दीन -बंधु प्रभु का कभी स्मरण नहीं किया || १ ||
मैं सदा ही माया में मग्न रहा ,इसीलिए मन की मलिनता दूर नहीं हो सकी | नानक कहते हैं कि अब भगवान् की शरण के बिना अन्य कोई गति (चारा )नहीं || २ || ३१ ||
सत्श्रीअकाल !
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