तिलंग महला ९ काफी (आदिश्री गुरु ग्रन्थ साहब से )
एकोंकार ... सतिगुर प्रसादि ||
चेतना है तउ चेत लै निसि दिन में प्रानी | छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटे घट जिउ पानी || १ || रहाउ ||
हरि गुन काहि न गावही मूरख अगिआना | झूठै लालचि लागि कै नहिं मरनु पछाना || १ ||
अजहू कछु बिगरिओ नही जो प्रभु गुन गावै | कहु नानक तिह भजन ते निरभै पदु पावै || २ || १ ||
भावसार
हे मनुष्य ! यदि परमात्मा का नाम स्मरण करना है ,तो दिन -रात्रि उसमें प्रवृत्त हो जाओ | अन्यथा जैसे टूटे हुए घड़े से पानी रिसता निकलता रहता है ,उसी प्रकार एक -एक क्षण करके उम्र बीतती जा रही है। || १ || रहाउ ||
हे मूर्ख ! तू प्रभु की गुणस्तुति के गीत क्यों नहीं गाता ?माया के झूठे लोभ में फंसकर तू मृत्यु की उपेक्षा क्यों करता है ?|| १ ||
लेकिन (नानक की )धारणा है कि परमात्मा का गुणगान (चाहे कितनी ही उम्र बीत जाए )कभी भी अहितकर नहीं होता। जब जागे तभी सवेरा। (क्योंकि )उस परमात्मा के भजन के प्रभाव से मनुष्य ऐसा ऊंचा आत्मिक स्थान प्राप्त कर लेता है ,जहां कोई भय असर नहीं करता || २ || १ ||
एकोंकार ... सतिगुर प्रसादि ||
चेतना है तउ चेत लै निसि दिन में प्रानी | छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटे घट जिउ पानी || १ || रहाउ ||
हरि गुन काहि न गावही मूरख अगिआना | झूठै लालचि लागि कै नहिं मरनु पछाना || १ ||
अजहू कछु बिगरिओ नही जो प्रभु गुन गावै | कहु नानक तिह भजन ते निरभै पदु पावै || २ || १ ||
भावसार
हे मनुष्य ! यदि परमात्मा का नाम स्मरण करना है ,तो दिन -रात्रि उसमें प्रवृत्त हो जाओ | अन्यथा जैसे टूटे हुए घड़े से पानी रिसता निकलता रहता है ,उसी प्रकार एक -एक क्षण करके उम्र बीतती जा रही है। || १ || रहाउ ||
हे मूर्ख ! तू प्रभु की गुणस्तुति के गीत क्यों नहीं गाता ?माया के झूठे लोभ में फंसकर तू मृत्यु की उपेक्षा क्यों करता है ?|| १ ||
लेकिन (नानक की )धारणा है कि परमात्मा का गुणगान (चाहे कितनी ही उम्र बीत जाए )कभी भी अहितकर नहीं होता। जब जागे तभी सवेरा। (क्योंकि )उस परमात्मा के भजन के प्रभाव से मनुष्य ऐसा ऊंचा आत्मिक स्थान प्राप्त कर लेता है ,जहां कोई भय असर नहीं करता || २ || १ ||
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