राम सिमर राम सिमर इहै तेरै काजि है। माइआ को संगु तिआगि प्रभ जू की सरनि लाग। जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है || १ ||
रागु जैजावंती महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब )
राम सिमर राम सिमर इहै तेरै काजि है। माइआ को संगु तिआगि प्रभ जू की सरनि लाग। जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है || १ ||
सपने जिउ धनु पछानु। काहे पर करत मानु। बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है। || १ ||
नानक जन कहत बात बिनसि जै है तेरो गात। छिनु छिनु करि गइओ कालु तैसे जातु आजु है। || २ || १ ||
भावसार :
ऐ जीव ,प्रभु -नाम का स्मरण कर ,तुम्हारे लिए यही करणीय (करने योग्य कार्य )है। माया की संगति (विकार -युक्त कार्यों की तल्लीनता )त्यागकर परमात्मा की शरण लो। सांसारिक सुखों को मिथ्या मानो ,दुनिया की सब शान -शौकत झूठी समझो। || १ || रहाउ ||
ऐश्वर्य स्वप्नवत उपलब्धि है ,घमंड किस बात पर करें ;धरती की सम्पन्नता बालू की भीति (रेत की दीवार )जैसी है। (कभी भी ढह सकती है )|| १ ||
गुरु नानक कहते हैं कि ऐ जीव ,बात कहते -कहते तुम्हारा शरीर नष्ट हो जाएगा। क्षण -क्षण करके जैसे कल का समय बीत गया ,वैसे ही आज बीत रहा है (अर्थात सारी आयु यों ही कट जाती है ,सांसारिक धन -दौलत को छोड़कर प्रभु नाम स्मरण करो )|| २ ||
राम सिमर राम सिमर इहै तेरै काजि है। माइआ को संगु तिआगि प्रभ जू की सरनि लाग। जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है || १ ||
सपने जिउ धनु पछानु। काहे पर करत मानु। बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है। || १ ||
नानक जन कहत बात बिनसि जै है तेरो गात। छिनु छिनु करि गइओ कालु तैसे जातु आजु है। || २ || १ ||
भावसार :
ऐ जीव ,प्रभु -नाम का स्मरण कर ,तुम्हारे लिए यही करणीय (करने योग्य कार्य )है। माया की संगति (विकार -युक्त कार्यों की तल्लीनता )त्यागकर परमात्मा की शरण लो। सांसारिक सुखों को मिथ्या मानो ,दुनिया की सब शान -शौकत झूठी समझो। || १ || रहाउ ||
ऐश्वर्य स्वप्नवत उपलब्धि है ,घमंड किस बात पर करें ;धरती की सम्पन्नता बालू की भीति (रेत की दीवार )जैसी है। (कभी भी ढह सकती है )|| १ ||
गुरु नानक कहते हैं कि ऐ जीव ,बात कहते -कहते तुम्हारा शरीर नष्ट हो जाएगा। क्षण -क्षण करके जैसे कल का समय बीत गया ,वैसे ही आज बीत रहा है (अर्थात सारी आयु यों ही कट जाती है ,सांसारिक धन -दौलत को छोड़कर प्रभु नाम स्मरण करो )|| २ ||
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