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Showing posts from December, 2018

'हुकुम रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ' भावार्थ :उसकी रजा यह है सब खुश रहें लेकिन उसकी रजा के पीछे एक और भी रजा है हर कोई प्रकृति के नियम की पालना करे। वह नियम हमारे माथे पे लिखा है ,हमारे साथ चल रहा है।

'हुकुम रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ' भावार्थ :उसकी रजा यह है सब खुश रहें लेकिन उसकी रजा के पीछे एक और भी रजा है हर कोई प्रकृति के नियम की पालना करे। वह नियम हमारे माथे पे लिखा है ,हमारे साथ चल रहा है। 'हुकुम रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि '   भावार्थ :उसकी रजा यह है सब खुश रहें लेकिन उसकी रजा के पीछे एक और भी रजा है हर कोई प्रकृति के नियम की पालना करे। वह नियम हमारे माथे पे लिखा है ,हमारे साथ चल रहा है।  हमारे दुःख का मतलब है हमने ज़रूर किसी नियम की कभी उलंघना की होगी वही इस दुःख की वजह बना है। सुख का मतलब नियम की अनुपालना है। परमात्मा (वाह गुरु किसी को दुःख  देता है न सुख ).  नियम है एक बीज बोया पृथ्वी हज़ार हज़ार बीज लौटा देती है। एक उपकार किसी के साथ किया हज़ार उपकार करने हम पर लोग आ जाते हैं। एक काँटा बोया किसी की राह में हज़ार हज़ार कंटक कांटे हमारी राह में लौट आते हैं।  कोई न काहू को सुख दुःख कर दाता ,निज कृत कर्म .... कर्म प्रधान विश्व करि राखा ,जो जस करहि सो तस फल चाखा।   परमात्मा को दोष मत दो अपनी विफलता का।  व...

करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा || कोटि बिघन लाथे प्रभ सरणा प्रगटे भले संजोगा || १ ||

|| सोरठि महला ५ || आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब से  करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा ||  कोटि बिघन लाथे प्रभ सरणा प्रगटे भले संजोगा || १ ||  प्रभ बाणी सबदु सुभाखिआ ||  गावहु सुणहु पड़हु नित भाई गुर  पूरै तू राखिआ || रहाउ ||  साचा साहिबु अमिति वडाई भगति वछल दइआला ||  संता की पैज रखदा अइआ आदि बिरदु प्रतिपाला || २ ||  हरि  अंमृत नामु भोजनु नित भुंचहु सरब वेला मुखि पावहु ||  ज़रा मरा तापु सभु नाठा गुण गोबिंद नित गावहु || ३ ||  सुणी अरदासि सुआमी मेरै सरब कला बनि आई ||  प्रगट भई सगळे जुग अंतरि गुर नानक की वडिआई || ४ || ११ ||  भावसार  प्रात : काल स्नान करके और प्रभु का नाम -स्मरण करके मन ,तन निरोग हो जाते हैं क्योंकि प्रभु की शरण लेकर करोड़ों रुकावटें दूर हो जातीं हैं और प्रभु के साथ मिलाप के अवसर बन जाते हैं || १ ||  हे भाई ! गुरु ने अपना सुन्दर उपदेश दिया है ,जो प्रभु की  गुणस्तुति की वाणी है ,इसे सदा गाते रहो ,सुनते रहो और पढ़ते रहो ,(ऐसा करने पर यह निश्चित है कि अनेक मुसीबतों से ) पूर्ण...

बीत जैहै बीत जैहै जनमु अकाज रे | निस दिन सुन कै पुरान। समझत नह रे अजान। काल तउ पहूचिओ आनि कहा जैहै भाजि रे || १ || रहाउ ||

रागु जैजावंती महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब ) बीत जैहै बीत जैहै जनमु अकाज रे | निस दिन सुन कै पुरान। समझत नह रे अजान। काल तउ पहूचिओ आनि कहा जैहै भाजि रे || १ || रहाउ ||  असथिरु जो मानिओ देह सो तउ तेरउ होइ है खेह | किउ न हरि को नामु लेह मूरख निलाज रे || १ || राम भगति हीए आनि छाडि दे तै मन को मानु | नानक जन इह बखान जग मै बिराजु रे || २ || ४ ||  भावसार  ऐ मनुष्य ,तुम्हारा मानव -जन्म व्यर्थ (निरर्थक )बीत जायगा |रात -दिन धर्म -ग्रंथों की कथाएं सुनकर भी ऐ मूर्ख ,तुम नहीं समझ सके | मौत तो अब आ पहुंची है ,उससे बचाकर कहाँ भाग जाओगे || १ || रहाउ ||  जिस काया को तुम स्थायी मानते हो ,वह तुम्हारा शरीर तो मिट्टी हो जायगा || ऐसे में ऐ मूर्ख ,निर्लज्ज ,क्यों प्रभु का नाम नहीं लेते ? || १ ||  अत : ऐ भले जीव ,हृदय में राम -भक्ति दृढ करके तुम मन के मान (गर्व ) को त्याग दो।  दास नानक कहते हैं कि इस प्रकार से (गर्व छोड़ -भक्ति बना ,भक्त बन ,भक्ति कर )जगत में जीवन जिओ || २ || ४ || 

राम भजु राम भजु जनमु सिरात है। कहउ कहा बार बार समझत नह किउ गवार। बिनसत नहलगै बार ओरे सम गात है || १ || रहाउ ||

रागु जैजावंती महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब ) राम भजु राम भजु  जनमु सिरात है। कहउ कहा बार बार समझत नह किउ गवार।  बिनसत नहलगै बार ओरे सम गात है || १ || रहाउ ||  सगल भरल डारि देह गोबिंद को नामु लेह। अंति बार संगि तेरे इहै एक जातु है।  || १ ||  बिखिआ बिख जिउ बिसारि प्रभ को जसु हीए धार।  नानक जन कहि पुकार अउसरु बिहातु है || २ || २ ||  भावसार :  ऐ मनुष्य ,तुम्हारा जन्म बीत रहा है ,प्रभु -भजन कर लो। बार -बार क्या कहूँ ,गंवार समझता क्यों नहीं ?(इस नश्वर शरीर को ) नाश होते विलम्ब नहीं लगता। यह शरीर तो ओले के समान है ,जो थोड़ी देर में पिघल जाता है || १ || रहाउ ||  समस्त भ्रमों का त्याग कर परमात्मा का नाम जपो ,अंतिम समय यही एक उपलब्धि तुम्हारे साथ जाती है || १ ||  विषय -विकारों से भरपूर माया को विष के समानत्यागकर प्रभु की कीर्ति को हृदय में धारण करो।  दास नानक पुकार कर कहते हैं कि अवसर जा रहा है (चूकने मत दो )|| २ ||   

राम सिमर राम सिमर इहै तेरै काजि है। माइआ को संगु तिआगि प्रभ जू की सरनि लाग। जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है || १ ||

रागु जैजावंती महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब ) राम सिमर राम सिमर इहै तेरै काजि है।  माइआ को संगु तिआगि प्रभ जू की सरनि लाग। जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है || १ ||  सपने जिउ धनु पछानु।  काहे पर करत मानु।  बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है। || १ ||  नानक जन कहत बात बिनसि जै है तेरो गात।  छिनु छिनु करि गइओ कालु  तैसे  जातु आजु है। || २ || १ ||  भावसार : ऐ जीव ,प्रभु -नाम का स्मरण कर ,तुम्हारे लिए यही करणीय (करने योग्य कार्य )है। माया की संगति (विकार -युक्त कार्यों की तल्लीनता )त्यागकर परमात्मा की शरण लो।  सांसारिक सुखों को मिथ्या मानो ,दुनिया की सब शान -शौकत झूठी समझो। || १ || रहाउ ||   ऐश्वर्य स्वप्नवत उपलब्धि है ,घमंड किस बात पर करें ;धरती की सम्पन्नता बालू की भीति (रेत की दीवार )जैसी है। (कभी भी ढह सकती है )|| १ ||  गुरु नानक कहते हैं कि ऐ जीव ,बात कहते -कहते तुम्हारा शरीर नष्ट हो जाएगा। क्षण -क्षण करके जैसे कल का समय बीत गया ,वैसे ही आज बीत रहा है (अर्थात सारी आयु यों ही कट जाती है ,सांसारिक धन -दौल...

कां को तनु धनु संपति कां की, का सिउ नेहु लगाही | जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाही || १ ||

सारंग महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रंथसाहब से ) कहा मन बिखिआ सिउ लपटाही | या जग में कोऊ रहनु न पावै इक आवहि इक जाही || १ ||  कां को तनु धनु संपति कां की, का सिउ नेहु लगाही | जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाही || १ ||  तजि अभिमानु सरणि संतन गहु मुकति होहि छीन माही | जन नानक भगवंत भजन बिनु सुखु सुपने भी नाही || २ || २ || भावसार  हे मन ,विषय विकारों से क्यों लिपटे हो ! इस संसार में स्थाई तौर पर किसी को नहीं रहना है , कोई आता है ,कोई जाता है (यही संसार का चलन है )|| १ || रहाउ ||  तरुवर बोला पात से सुनो पात एक बात , या घर याहि रीत है ,एक आवत एक जात।  पत्ता टूटा डार से ले गई पवन उड़ाय , अब के बिछुड़े कब मिलें दूर पड़ेंगे जाय।  पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात , देखत ही बुझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात।   माली आवत देख के कलियाँ करें  पुकार , फूली फूली चुन लै कालि हमारी बार. यह तन ,धन ,संपत्ति किसकी हुई है ? कौन किससे प्रेम लगाता है ?जो कुछ भी दृश्यमान है , वह सब बादल की छाया के समान नश्वर है।|| १ ||  अत : ऐ जीव , अभिमान त...

मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ | बिखिआ सकति रहिओ निस बासुरे कीनो मो अपनो भाइओ || १ ||

सारंग महला ९ (आदिश्रीगुरुग्रन्थ साहब से ) मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ | बिखिआ सकति रहिओ निस बासुरे कीनो मो अपनो भाइओ || १  || गुर उपदेस सुनिओ नहि काननि परदारा लपटाइओ | परनिंदिआ कारनि बहु धावत समझिओ नह  समझाइओ || १ ||  कहा कहउ मैं अपनी करनी जिह बिधि जनमु गवाइओ | कहि नानक सभ अउगन मो मै राखी लेहु सरनाइओ || २ || ४ || ३ || १३ || ४ || १५९ ||  भावसार  तुमने कभी  मन -लगाकर प्रभु का गुण नहीं गाया | रात -दिन विषयासक्त रहे और स्वेच्छाचरण करते रहे || १ || रहाउ ||  अपने कानों से गुरु का उपदेस नहीं सुना पराई स्त्री में आसक्त रहे | पर -निंदा में रत  होकर प्रसन्न होते रहे ,समझाने पर भी नहीं समझे। || १ ||  अपने कर्मों को मैं क्या बताऊँ कि मैं कैसे जन्म बिता रहा हूँ।  गुरु नानक कहते हैं कि मुझमें सब अवगुण मौजूद हैं ,(हे प्रभु ,दया करके मुझे )अपनी शरण में संरक्षण दो। || २ || ४ || ३ || १३ || १३९|| ४ || १५९ || 

जा मै भजनु राम को नांही | तिह नर जनमु अकारथ खोइआ यह राखउ मन माही || १ ||

(रागु )बिलावलु महला ९ (आदिश्री गुरु ग्रन्थ साहब से ) जा मै भजनु राम को नांही | तिह नर जनमु अकारथ खोइआ यह राखउ मन माही || १ ||  तीरथ करै ब्रत फुनि राखै नह मनूआ बसि जा को | निहफल धरम ताहि तुम  मानो साचु कहत मै या कउ || १ ||  जैसे पाहनु जल महि राखिओ भेदै नाहि तिहि पानी | तैसे ही तुम ताहि पछानो भगति हीन जो प्रानी || २ ||  कल मै मुकति नाम ते पावत गुर यह भेदु बतावै | कहु नानक सोई नरु गरूआ जो प्रभ के गुन गावै || ३ || ३ ||  भावसार : जो लोग राम -भजन नहीं करते उन लोगों का जन्म व्यर्थ है ,ऐसा निश्चय मान लो || १ || रहाउ ||  जो लोग तीर्थ करते हैं ,व्रत -उपवास में भी कष्ट उठाते हैं ,तो भी यदि उनका मन वश में नहीं है तो उनका समूचा धर्म -विधान निष्फल है ,यह मेरा अनुभूत सत्य है || १ ||  जैसे यदि पत्थर को पानी में रखा जाये तो पानी उसके भीतरी भाग को नहीं भिगो पाता ; ठीक वैसे ही तुम भक्तिहीन प्राणियों को समझो (वे भी बाहरी आडम्बर तो करते हैं ,किन्तु पत्थर की तरह भक्ति उनके भीतर प्रभाव नहीं डालती )|| २ ||  गुरु ने यह रहस्य स्पष्ट कर दिया है कि कलियुग...

ताकि उसे कोई रँडुवा न कहे

ताकि उसे कोई रँडुवा न कहे  आप सोच रहे होंगे ये 'उसे 'कौन है ,वही है जिसकी पैरवी कपिल सिब्बल कर रहें हैं अनिल अम्बानी के साथ मिलकर जो षड्यंत्र कर रहा है।  और स्पष्ट कर दें जो 'गांधी'  की 'केंचुल' उतार कर अब 'कॉल' और' दत्तात्रेय' हो गया है। जनेऊ पहनने लगा है और अपने को हिन्दू कहने कहलवाने में वह गर्व महसूस कर रहा है। प्रसंगवश बत्लादें 'कॉल' का एक अर्थ तंत्र -विद्या में में पारंगत भी होता है ,तांत्रिक भी होता है।   उसने (राहुल )अपनी अम्मा  से कहा ये झूठ बोलने का बोझ बहुत बढ़ गया है जो आपने मुझे विधिवत बोलना सिखाया है और गांधी और झूठ साथ -साथ नहीं चलते इसीलिए मैं कॉल हो गया क्योंकि झूठ बोलना तो मैं छोड़ नहीं सकता। इसीलिए मैंने गांधी उपनाम छोड़ दिया। अब मैं राहुल दत्तात्रेय हो गया।  'राहुल 'राहुल पंडित ,राहुल दत्तात्रेय कहलाएं हम भी यही चाहते हैं। यह काम आसान और प्रामाणिक तरीके से हो सकता है। अगर सुप्रीम कोर्ट के ये तीनों उकील नुमा कपिल -मनीष -सिंघवी मिलकर प्रयास करें और राहुल को और उनकी अम्मा को राजी कर लें राहुल अपने गुप्त वि...

चेतना है तउ चेत लै निसि दिन में प्रानी | छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटे घट जिउ पानी || १ || रहाउ ||

तिलंग महला ९ काफी (आदिश्री गुरु ग्रन्थ साहब से ) एकोंकार ... सतिगुर प्रसादि ||    चेतना है तउ चेत लै   निसि दिन में प्रानी | छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटे घट जिउ पानी || १ || रहाउ ||  हरि गुन काहि न गावही मूरख अगिआना | झूठै लालचि लागि कै नहिं मरनु पछाना || १ ||  अजहू  कछु बिगरिओ  नही जो प्रभु गुन गावै | कहु नानक तिह भजन ते निरभै पदु पावै || २ || १ ||  भावसार  हे मनुष्य ! यदि परमात्मा का नाम स्मरण करना है ,तो दिन -रात्रि उसमें प्रवृत्त हो जाओ | अन्यथा जैसे टूटे हुए घड़े से पानी रिसता निकलता रहता है ,उसी प्रकार एक -एक क्षण करके उम्र बीतती जा रही है। || १ || रहाउ ||  हे मूर्ख ! तू प्रभु की गुणस्तुति के गीत क्यों नहीं गाता ?माया के झूठे लोभ में फंसकर तू मृत्यु की उपेक्षा क्यों करता है ?|| १ ||  लेकिन (नानक की )धारणा है कि परमात्मा का गुणगान (चाहे कितनी ही उम्र बीत जाए )कभी भी अहितकर नहीं होता। जब जागे तभी सवेरा। (क्योंकि )उस परमात्मा के भजन के प्रभाव से मनुष्य ऐसा ऊंचा आत्मिक स्थान प्राप्त कर लेता है ,जहां ...

कहउ कहा अपनी अधमाई | उरझिओ कनक कामनी के रस नह कीरति प्रभ गाई || १ ||

टोडी महला ९ (आदिश्री गुरु ग्रन्थ साहब से ) एकोंकार .......सतिगुर प्रसादि ||  कहउ  कहा अपनी अधमाई | उरझिओ कनक कामनी के रस नह कीरति प्रभ गाई || १ ||  जग झूठै कउ साचु जानिकै ता सिउ रुच उपजाई।  दीनबंधु सिमरिओ नही कबहू होत जु संगि सहाई || १ ||  मगन रहिओ माइआ मै निस दिनि छुटी न मनकी काई | कहि नानक अब नाहि अनत गति बिनु हरि की सरनाई || २ || ३१ ||  भावसार : हे प्रभो !मैं अपनी क्या- क्या अधमता वर्णन करूँ ?क्योंकि मैं तो निरंतर कनक और कामिनी (धन और स्त्री )के आनंद में ही उलझा रहा | कभी प्रभु का गुणगान नहीं किया || १ ||रहाउ ||  इस झूठे संसार को सत्य मानकर इसमें ही अपनी रूचि बनाए रखी | सदा सहायक दीन -बंधु प्रभु का कभी स्मरण नहीं किया || १ ||  मैं सदा ही माया में मग्न रहा ,इसीलिए मन की मलिनता दूर नहीं हो सकी | नानक कहते हैं कि अब भगवान् की शरण के बिना अन्य कोई गति (चारा )नहीं || २ || ३१ ||  सत्श्रीअकाल !    ..... 

साधो इहु जगु भरम भुलाना | राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना | | १ || रहाउ ||

धनासरी महला ९ (आदि श्री गुरुग्रंथ साहब से ) साधो इहु जगु भरम भुलाना | राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना | | १ || रहाउ ||  मात पिता भाई सुत बनिता ताकै रसि लपटाना | जोबनु धनु प्रभता कै मद मै अहिनिसि रहै दिवाना || १ ||  दीनदइआळ सदा दुखभंजन ता सिउ मनु न लगाना | जन नानक कोटन मै किनहू गुरमुखि होइ पछाना || २ ||  भावसार : हे संतो !यह जगत दुविधाग्रस्त होकर कुमार्गगामी हुआ रहता है।  प्रभु के नाम का स्मरण विस्मृत किए रहता है और माया के हाथ में बिका रहता है || १ || रहाउ ||  भ्रम में फंसा हुआ यह जगत माँ ,पिता ,भाई ,पुत्र ,स्त्री के मोह में फंसा रहता है।  यौवन तथा धन की शक्ति के नशे में यह जगत पागल हुआ है || १ ||  जो परमात्मा दीनों पर दया करने वाला है ,जो सारे दुखों का नाश करने वाला है ,जगत उस परमात्मा में मन नहीं लगाता। दास नानक का कथन है कि करोड़ों में से किसी एक मनुष्य ने गुरु की शरण लेकर परमात्मा से मेल किया है।  || २ || २ ||  

काहे रे बन खोजन जाई | सर्ब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई || १ || रहाउ ||

काहे रे बन खोजन जाई | सर्ब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई || १ || रहाउ ||  पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई | तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई || १ ||  बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआनु बताई | जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई || २ || १ ||  भावसार : हे भाई ! परमात्मा को पाने के लिए तू जंगलों में क्यों जाता है ?परमात्मा सबमें विद्यमान है ,लेकिन सदा माया में निर्लिप्त रहता है। वह परमात्मा तुम्हारे साथ ही रहता है || १ ||  हे भाई ! जैसे पुष्प में सुगन्धि ,शीशे में प्रतिबिम्ब रहता है , उसी प्रकार परमात्मा निरंतर सबके भीतर अवस्थित रहता है।  इसलिए उसे अपने हृदय में ही खोजो। || || १ ||  गुरु का उपदेश यह बतलाता है कि अपने भीतर और बाहर एक परमात्मा को अवस्थित समझो। हे दास नानक ! अपना आत्मिक जीवन परखे दुविधा का जाला दूर नहीं हो सकता। || २ || १ || 

सोरठि महला ९ (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से ) प्रीतम जानि लेहु मन माही | अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही || १ || सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै | बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै || १ || घर की नारि बहुतु हित जा सिउ सदा रहत संग लागी | जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी || २ || इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ | अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ || ३ || १२ || १३९ ||

सोरठि महला ९ (आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहब से ) प्रीतम जानि लेहु मन माही | अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही || १ ||  सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि  घेरै | बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै || १ ||  घर की नारि बहुतु हित जा सिउ सदा रहत संग लागी | जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी || २ ||  इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ | अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ || ३ || १२ || १३९ ||  भावसार : हे मित्र ! मन में यह बात निश्चित समझ लो कि सारा संसार अपने सुख के साथ बंधा है | कोई भी किसी का साथी नहीं बनता | | १ || रहाउ ||  हे दोस्त ! सुख के दिनों में कितने ही दोस्त -मित्र मिलकर बैठते हैं और संपन्न व्यक्ति को चारों ओर से घेरे रखते हैं ; किन्तु जब उस पर मुसीबत पड़ती है तो सब साथ छोड़ जाते हैं ,कोई भी उसके निकट नहीं आता || १ ||  हे मित्र ! पत्नी (भी )जिसके साथ असीम नेह होता है , जो सदा पति के साथ लगी रहती है ; (वह भी ) जिस वक्त  जीवात्मा इसे (शरीर )को छोड़ जाता है ,पत्नी इससे परे हट जाती है (कि यह...

जो नरु दुःख मै दुखु नही मानै | सुख सनेहु अरु भै नही जाकै कंचन माटी मानै || १ || रहाउ ||

सोरठि महला ९  जो नरु दुःख मै दुखु नही मानै | सुख सनेहु अरु भै नही जाकै कंचन माटी मानै || १ || रहाउ ||  नह निंदिआ नह उसतति जाकै लोभु अभिमाना | हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना || १ ||  आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहै निरासा | कामु क्रोधु जिह परसै नाहनि तिह घटि ब्रह्म निवासा || २ ||  गुर किरपा जिह नर कउ कीनी तिह इह जुगति पछानी | नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ जिउ पानी संगि पानी || ३ ||   भावसार : हे भाई !जो मनुष्य दुखों में घबराता नहीं ,जिसके हृदय में सुखों के प्रति मोह नहीं और जो सोने को मिट्टी तुल्य समझता है (वही परमात्मा को अपने भीतर महसूसता है )|| १ || रहाउ ||  हे भाई ! जिस मनुष्य के भीतर किसी की निंदा -चुगली नहीं ,खुशामद नहीं ,लोभ मोह और अहंकार नहीं ; जो मनुष्य सुख और दुःख से निर्लिप्त रहता है ,जिसे आदर -अनादर स्पर्श नहीं करते (वही प्रभु को अपने भीतर महसूस करता है )|| १ ||  जो मनुष्य आशाओं और उम्मीदों को त्याग देता है , जगत से निर्लिप्त रहता है ,जिसे न काम वासना स्पर्श कर सकती  है , न क्रोध स्पर्श कर सकता है ,उस मनुष्य के हृदय मे...

हरि की गति नहि कोऊ जानै | जोगी जती तपी पचि हारे अरु बहु लोग सिआने || १ || रहाउ ||

१ ओङ्कार  ..सतिगुर प्रसादि ||  रागु बिहागड़ा महला ९ ||  हरि की गति नहि कोऊ जानै | जोगी जती तपी पचि हारे अरु बहु   लोग सिआने || १ || रहाउ ||  छिन महि राउ रंक कउ करई राउ रंक करि डारे | रीते भरे भरे सखनावै यह ताको बिवहारे || १ ||  अपनी माइआ आपि पसारी आपहि देखन हारा | नाना रूप धरे   बहुरंगी सभ ते   रहै निआरा || २ ||  अगनत अपारु अलख निरंजन जिह सभ जगु भरमाइओ | सगल भरम तजि नानक प्राणी चरनि ताहि चितु लाइओ || ३ || १ || २ ||  भावसार : हे भाई !अनेक योगी ,तपस्वी तथा अन्य बहुत से बुद्धिमान मनुष्य साधना करके हार गए ,लेकिन कोई भी मनुष्य यह नहीं जान सकता कि परमात्मा कैसा है || १ || रहाउ ||  हे भाई ! वह परमात्मा एक क्षण में निर्धन को राजा बना देता है और राजा को निर्धन बना देता है। खाली बर्तनों को भर देता है और भरे हुए बर्तनों को खाली कर देता है -यह उसका नित्य प्रति का कार्य है। || १ ||  इस दृश्यमान जगत रुपी तमाशे में परमात्मा ने अपनी माया फैलाई हुई है वह आप ही इसकी देखभाल कर रहा है। वह अनेक रंगों का स्वामी -प्र...

तन ते प्रान होत जब निआरे टेरत प्रेति पुकारि | आध घरी कोऊ नहि राखै घरि ते देत निकारि || १ ||

देव गंधारी महला ९ (आदिगुरु श्री ग्रन्थ साहब से) सभि किछु जीवत को बिवहार | मात पिता भाई सुत बंधप अरु फुनि ग्रिह की नारि || १ || रहाउ ||  तन ते प्रान होत जब निआरे टेरत प्रेति पुकारि | आध घरी कोऊ नहि राखै घरि ते देत निकारि || १ ||  ि म्रगत्रिसना जिउ जग रचना यह देखहु रिदै बिचारि | कहु नानक भजु राम नाम नित जाते होत उधार || २ ||  भावसार : हे भाई !माँ ,बाप ,भाई ,पुत्र ,रिश्तेदार तथा पत्नी भी -सब कुछ जीवित रहते हुए (व्यक्तियों का )मेल -मिलाप है।  || १ || रहाउ ||  हे भाई ! जब आत्मा शरीर से अलग हो जाती है ,तो सगे -संबंधी उच्च स्वर से कहते हैं कि यह मर चुका है ,गुज़र चुका है। कोई भी संबंधी आधी घड़ी  के लिए भी घर में नहीं रखता ,घर से बाहर निकाल देते हैं || १ || रहाउ ||  हे भाई !अपने हृदय में विचार कर देख लो ,यह सांसारिक क्रीड़ा मृगतृष्णा के तुल्य है | नानक का कथन है कि हे भाई ! सदा परमात्मा के नाम का भजन किया करो ,जिसके प्रभाव से संसार से उद्धार हो जाता है। || २ ||  

JAGAT MEIN JHOOTHI DEKHI PREET -Explanation in Hindi

देव  गंधारी महला ९  जगत में देखी प्रीति | अपने ही सुख सिउ सभि लागे किआ दारा किआ मीत || १ ||  मेरउ   मेरउ   सभै कहत है हित सिउ बाधिओ चीत | अंति कालि संगी नह कोऊ इह अचरज है रीति || १ ||  मन मूरख अजहू न समझत सिख दै हारिओ नीत | नानक भउजलु पारि परै जउ गावै प्रभ के गीत || २ || ३ || ६ || ३८ || ४७ ||  भावसार : हे भाई !दुनिआ में सम्बन्धियों का प्रेम मैंने मिथ्या ही देखा है।चाहे स्त्री हो या मित्र -सब अपने सुख की खातिर आदमी के साथ लगे हैं || १ || रहाउ ||  हे भाई !सबका हृदय मोह से बंधा हुआ है। प्रत्येक यही कहता है कि 'यह मेरा है ', 'यह मेरा है 'लेकिन अंतिम समय  कोई मित्र नहीं बनता। यह आश्चर्य मर्यादा सदा से चली आई है || १ ||  हे मूर्ख मन !तुझे मैं कह -कहकर थक गया हूँ ,तू अभी भी नहीं समझता | नानक का कथन है कि जब मनुष्य परमात्मा की गुणस्तुति  के गीत गाता है ,तब संसार सागर से उसका उद्धार हो जाता है। || २ || ३ || ६ || ३८ || ४७ ||  9: JAGAT MEIN JHOOTHI DEKHI PREET BY BHAI HARJINDER SINGH JI SR ...